को अपना शिकार बनाते है, और इन बडे पूॅजीवादियो के विनाश के लिए संसार के महान् पूॅजीपति, अन्तर्राष्ट्रीय गुटो द्वारा, ससार के प्रमुख व्यवसायो पर एकाधिकार कर लेते है। आधुनिक पूॅजीवाद का जन्म व्यावसायिक उथल-पुथल से हुआ और इसने साम्राज्यवाद, आर्थिक साम्राज्यवाद तथा फासिज्म को जन्म दिया। फ़ासिज़्म के रूप मे पूॅजीवाद को राज्य से सहायता मिली।
पूना समझौता--१७ अगस्त १९३२ को ब्रिटिश प्रधान-मंत्री (अब मृत) श्री रैम्ज़े मैकडानल्ड ने 'साम्प्रदायिक निर्णय' प्रकाशित किया, जिसके अनुसार भावी शासन-विधान (१९३५) द्वारा स्थापित धारा-सभाओ मे भारत के सम्प्रदायों के लिए प्रतिनिधियो कि सख्या का अनुपात तथा निर्वाचन-प्रणाली निर्धारित की गई। परिगणित (दलित) जातियो के लिए प्रधान-मंत्री ने विशेष-निर्वाचन प्रणाली की योजना उसमें रखी, जिसके अनुसार दलित जातियों के निर्वाचन के पृथक् मण्डल रखे गये, परन्तु उनके मतदाताओ को अन्य हिन्दुओ के उम्मीदवारो को मत देने तथा उनके चुनाव मे खडे होने का अधिकार भी दिया गया। महात्मा गांधी ने इस निर्णय के विरुद्ध, जहाॅ तक उसका दलित जातियो से समबन्ध था, २० सितम्बर १९३२ को यरवदा जेल मे आमरण व्रत रखकर विरोध किया, क्योकि १९०९ के मिन्टो-मार्ले-सुधार से सिख सम्प्रदाय को विशाल हिन्दू राष्ट्र से पृथक् करने के बाद, इस निर्णय द्वारा, हिन्दू राष्ट्र के अंग, दलित समाज को उससे पृथक् कर देने की यह कूटनितिक योजना थी। इस्से देश मे बडी बेचैनी तथा नैराश्य छा गया। २५ सितम्बर १९३२ को महामना प० मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में हिन्दू तथा दलित वर्ग के नेताओं का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें दोनो पक्षों मे समझौता होगया।
२६ सितम्बर १९३२ को यह समझौता सरकार ने स्वीकार कर लिया। यह समझौता १० वर्ष के लिए हुआ है और पूना-पैक्ट के नाम से प्रसिद्ध है। इस समझौते की प्रथम धारा के अनुसार प्रान्तीय असेम्बलियों में दलित जातियों के लिए इस प्रकार स्थान सुरक्षित किसे गये: मद्रास ३०, बम्बई १५, पंजाब ८, बिहार १५, उड़ीसा ६, मध्यप्रदेश २०, आसाम ७, बंगाल ३०, संयुक्तप्रांत २०। कुल सदस्यों की संख्या १५१।