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पेताॅ
 

पूर्ण स्वराज्य--भारतीय राष्ट्रीय महासभा ने अपने १९२९ ई० के लाहौर अधिवेशन मे पूर्ण स्वाधीनता की घोषणा के साथ यह स्पष्ट कर दिया कि काग्रेस भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य को स्वीकार न करेगी। वह ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत स्वराज्य नहीं चाहती। परन्तु देश के उदारदली लोग वैस्टमिन्स्टर कानून (Westminster Statute) के अनुसार प्राप्त औपनिवेशिक पद से ही सन्तुष्ट होजाना चाहते हैं। महात्मा गांधी ने यह निश्चित रूप से घोषणा कर दी है कि वह भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य नहीं चाहते।

पूर्वी राष्ट्र-सम्मेलन--२५ अक्टूबर १९४० को नई दिल्ली में पूर्वीय राष्ट्र सम्मेलन हुआ, जिसमे आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, भारत, दक्षिण रोडेशिया, नयासालैण्ड, जजीबार, ब्रह्मा, लका, मलय, हाग्काग् तथा फिलस्तीन राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन का उद्घाटन लार्ड लिनलिथगो ने किया तथा भारत-सरकार के तत्कालीन कानून-सदस्य सर मुहम्मद जफरुल्लाखाॅ ने सभापति का आसन ग्रहण किया। सम्मेलन का उद्देश्य यह था कि पूर्वीय राष्ट्र युद्ध-सामग्री तैयार करने में परस्पर सहयोग से कार्य करे तथा स्वाश्रयी बन जायॅ। पूर्वीय देशों में युद्ध का ख़तरा है इसीलिए यह सम्मेलन, युद्ध-सामग्री की पैदावार के सम्बन्ध मे, विचार करने के लिए, किया गया था। किसी देश मे एक युद्ध-सामग्री अत्यधिक पैदा न की जाय, और न ऐसा ही किया जाय कि वह किसी दूसरी, वस्तु को पैदा करने मे उदासीन रहे। अधिवेशन में बताया गया कि ४०,००० युद्धोपयोगी उपादान मे से २०,००० वस्तुएँ भारत मे उत्पन्न होती है। यह ब्रिटेन के अधीन देशो का सम्मेलन था।

पेतॉ, हैनरी फिलिप--फ्रान्सीसी प्रधान सेनापति। १६ जून १९४० को जब फ्रान्स के प्रधान मत्री रिनौ ने त्याग-पत्र दे दिया, तब मार्शल पेतॉ प्रधान मत्री बना। १७ जून '४० को फ्रान्स ने जर्मनी से शान्ति-सधि की वार्ता शुरू की और २२ जून को दोनो देशो के बीच विराम-सधि होगई। १० जुलाई '४० को फ्रान्स की राष्ट्रीय परिषद् का अधिवेशन हुआ, जिसमे परिषद् ने प्रजातत्र-सरकार के समस्त अधिकार मार्शल पेतॉको देदिये। फ्रान्स के लिए नया स विधान बनाने के लिए भी उससे निवेदन कियागया। इसके अनुसार ११,