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फिनलैण्ड
१९९
 


किन्तु जर्मन सेना की मदद से फिन् जीत गये। फिनलैण्ड सिद्धान्तः साम्यवाद-विरोधी है, किन्तु यह तटस्थ देश रहा है। इसका शासन प्रजातत्रात्मक है। सन् १९३८ के चुनाव में समाजवादी दल पार्लमेन्ट का सबसे बडा दल था, इसके बाद पुरातनवादी किसान-दल था। वर्तमान सरकार जनवरी १९४१ मे बनी है। राष्ट्रपति मार्शल रेजल है।

अक्टूबर १९३९ मे सोवियत रूस ने फिनलैण्ड से नीचे लिखे मतालिबे किये : फिनलैण्ड के द्वीपो मे, फिनलैण्ड की खाडी मे, रूसी नौ-सेना के अड्डे बनाये जायॅ। फिनलैण्ड प्रदेश के हैगो स्थान पर भी नौ-सेना के अड्डे बनाने का अधिकार दिया जाय। पैटसामो का बन्दरगाह दे दिया जाय। सीमा-सम्बन्धी अन्य कई मॉगे भी थी। जब फिनलैण्ड ने इनमे से कुछ मॉगो को स्वीकार नही किया तो सोवियत रूस की सेना ने, ३० नवम्बर १९३९ को, फिनलैंड पर आक्रमण कर दिया। ३ मास तक फिनलैण्ड की सेनाएँ मार्शल मैनरहीम के नेतृत्व मे बहादुरी के साथ लडती रही। परन्तु, मार्च १९४० के आरम्भ मे, रूस ने फ़िनलैण्ड की किलेबन्दी--मैनरहीम-दुर्ग-पक्ति--पर आक्रमण कर देश मे प्रवेश करना आरम्भ कर दिया। तब फिनलैण्ड को आत्म-समर्पण करना पडा। यद्यपि फिनलैण्ड की सहायता के लिए राष्ट्रसघ का अधिवेशन आमंत्रित किया गया और उसमे सोवियत रूस को आक्रमक घोषित कर उसके विरुद्ध फिनलैण्ड की मदद के लिये अपील कीगई, तथा ब्रिटेन, फ्रान्स, स्वीडन आदि देशो ने उसकी मदद मे युद्ध-सामग्री भी भेजी, तथापि फिनलैण्ड इस मदद से लाभ न उठा सका। १० मार्च १९४० को ब्रिटेन और फ्रान्स के प्रधान-मत्रियो ने घोषणा की कि यदि फिनिश सरकार मदद के लिये अपील करे तो मित्रराष्ट्रो की एक लाख सेना उसकी सहायता के लिये भेजी जा सकती है। परन्तु स्केन्डीनेविया के देशो ने, जर्मनी के भय से, इस सेना को रास्ता देना मजूर नही किया, इसलिए अपील नहीं की गई। ११ मार्च १९४० को रूस-फिनलैण्ड मे सधि होगई। इस सधि के अनुसार फिनलैण्ड ने करेलियन थल-डमरू-मध्य का लगभग १००० मील लम्बा प्रदेश, लादोगा झील का पश्चिमी भाग, मैनरहीम की क़िलेबन्दी, विवोर्ग का बन्दरगाह और फिशमैन का प्रायद्वीप रूस को दे दिये तथा हैंगो मे नौ-सेना के अड्डे के लिये पट्टे पर