बरनार्ड शॉ हैं। बीट्रिस पाटर और श्रीमती वब बाट में आये। इन विचारकों ने गैर-मार्क्सवादी विकासवादी जनसत्तात्मक समाजवाद को प्रगति दी। इन्होने आदर्शवाद को अधिक महत्व दिया। भौतिक- वाद पर ज़ोर नही दिया,जैसा कि मार्क्सवाद मे दिया गया है। पूँजीवाद के यह विरोधी हैं,परन्तु वर्ग-संघर्ष में इनका विश्वास नहीं है। आर्थिक क्षेत्र मे वे मार्क्स के बजाय रिकाडों और वेन्थम नरम अर्थवादियों के अनुयायी हैं। फेबियन अन्वेषण विभाग द्वारा समा- जवाद पर काफ़ी साहित्य प्रकाशित हुआ है। सन् १९१८ मे इस विभाग का नाम "मज़दूर अन्वेषण विभाग” रख दिया गया और इसका फेबियनों से कोई संबंध न रहा। यह विभाग साम्यवादी प्रभाव मे है। सन् १९३१ मे नवीन फेवियन अन्वेषण ब्यूगे खोला गया। सन् १९३१ मे इसका फेबियन सोसायटी से सबंध स्थापित हो गया। ब्रिटेन के राजनीतिक इतिहास मे फेबियन सोसाइटी का महत्वपूर्ण स्थान है:आज़ाद मज़दूर ढल,मज़दूर दल तथा अन्य राजनीतिक सस्थाएँ इसीके द्वारा वहाँ बनीं।
बग-भग-जुलाई १९०५ में भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड पर्जन ने ब्रिटिश सरकार की ओर से यह घोषणा की कि बंगाल प्रात पश्चिमी चगाल और पूर्वी बंगाल तथा श्रामाम दो प्रांतों में विभाजित किया जायगा। बंगाल की ममस्त जनता और लोक-नेता इस विभाजन के विरुद्ध थे। सरकार कार पक्ष था कि शासन-सुविधाओं के विचार से ही दो प्रांतों का निर्माण दिया जा रहा है । परनु. वास्तव मे,बंगाल में बहती दुई राष्ट्रीयता का हाम जाने के लिये बंगाल को दो प्रानी में विभक्त किया जा रहा था जिनमें हिंदृ-मस्तितम प्रात बन जायें और माम्प्रदायिक,ममत्या गम्भीर हो जाय। इसी वर्ष मुसलमानों का(मुन्तिम लीग का) एक प्रतिनिधि-मररल. नागारों के