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२०६ वलगारिया गरीब, पिछड़ी हुई और प्रायः अपढ है । किसान कर्ज से लदे हुए हैं। किसानजनता के जाग्रत होने ही से इन देशो का उद्धार किसी दिन भले हो। ऐसी ही कठिनाइयों के कारण बलकानी देशो में शाही या सैनिक अधिनायकवाद तो, लडाई से बहुत पहले ही, कायम हो चुका है। वलकान-समझौता–फर्वरी १६३४ को यूनान, तुर्किस्तान, यूगोस्लाविया और रूमानिया में यह समझौता हुआ कि वे सब मिलकर, बलकानी सीमाशो की रक्षा के लिये, पारस्परिक निश्चित अाश्वासन देते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि हस्ताक्षर न करनेवाले अन्य बलकानी राज्य के साथ स्वतत्र रीति से कोई कार्यवाही न करेगे । (बलग़ारिया तथा अलवानिया ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये । अलवानिया तव स्वतन्त्र था।) एक गुप्त सन्धि भी हुई, जिसके अनुसार निश्चय किया गया कि यदि किसी गैर-वलकानी राष्ट्र ने उपर्युक्त चार में से किसी राज्य पर भी आक्रमण किया, और, यदि किसी बलकानी राज्य ने उसमे सहयोग दिया, तो, चारो बलकानी राज्य मिलकर उसका मुकाबला करेगे । एक शोर गुप्त सधि द्वारा यह भी निश्चय हुशा कि यदि बलग़ारिया ने बलकानी राज्यो पर आक्रमण करने में किसी बाहरी राष्ट्र को मदद दी तो उसके विरुद्ध क्या-क्या काररवाइयों कीजायेंगी । बलकानी राज्यों की एक स्थायी कोसिल, एक अार्थिक-परिषद् और एक सैक्रेटरियट है । फरवरी १९४० में वेलग्रेड के एक सम्मेलन में बलकानी-समझौते की अवधि सात साल के लिये और बढ़ाई गई, और इस बात पर जोर दिया गया कि वर्तमान योरपीय युद्ध में चारो राज्य तटस्थ रहे। जुलाई १९४० मे रूमानिया ने बलकान-समझौते को ठुकराकर जर्मनी के गुट में शामिल होने का निश्चय किया। मार्च १९४१ में यूगोस्लाविया ने भी त्रिराष्ट्र-सधि-पत्र ( जर्मनी-इटली-जापान ) पर हस्ताक्षर कर दिये और इसी वर्ष, जर्मनी द्वारा अधिकृत होजाने से, बलकानी-राष्ट्रो का यह समझौता व्यर्थ होगया । बलगारिया---बलकानी राष्ट्रों में से एक, क्षेत्रफल ४,००,००० वर्गमील, आबादी ६३,००,०००, राजधानी सूफिया, शासक राजा बोरिस तृतीय। १९१२ के तुर्की के विरुद्ध लडे गये प्रथम बलकान-युद्ध में सफल होने के बाद, १९१३