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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२२९

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वेनेश
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हैं । इस उच्च पद पर रहकर श्राप देश-रक्षा | के लिये किस अनथक यत्न, बुद्धिमत्ता और । | साहस से साथ नात्सी सेनाशो का मुका| वला कर रहे हैं, इसका प्रमाण पिछले चार | महीनो से नात्सी-सेनाशो की रूस मे बराबर होने वाली हार है । मार्शल तिमोशेको के | श्राप सहयोगी हैं । तिमोशेको रक्षा-विभाग | के मत्री (Commissar ) हैं । ब्र.निन्, डा० हीनरिच–जर्मन प्रजातंत्र | का पूर्व चान्सलर । सन् १९३१ मे जब राइवताग के चुनावों मे नात्सीदल की विजय .... होगई तब ब्रूनिंग ने अधिनायक-तंत्र की स्थापना की । उसने नासियों को अपनाने का प्रयास किया, किन्तु वह विफल रहा । सन् १९३२ मे राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने उसे निकाल दिया । नात्सी-विरोधी होते हुए भी, कहा जाता है। कि, ब्रूनिंग ने प्रजासत्ता को दबाकर नात्सीवाद के लिये मार्ग प्रशस्त किया । हिटलर के एक वर्ष के शासन के बाद वह अमरीका चला गया और वहाँ दरवर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिये । | वेनेश, ऐडवर्ड-पीएच० डी० । चैकोस्लोवाकिया के राष्ट्रपति थे। जन्म २५ मई १८८४ । पैरिस मे शिक्षा पाई । सन् १९०६ मे प्रेग के एक व्यापारिक कालिज में अध्यापक हुए । सन् १९१४ में युद्ध छिडने के बाद के गुप्त ग्रास्ट्रिया-विरोधी आन्दोलन में शामिल होगये । सन् १९१५ में गुप्त रूप से स्विट्जरलैण्ड गये । मसारिक के दाहिने हाथ बन गये । चेकोस्लोवाक राष्ट्रीय परिषद् के प्रधानमंत्री बने । बाद में जब यह परिषद्, चेकोस्लोवाकिया की सरकार की भाति, स्वीकार करली गई, तब वेनेश १९१८ में वैदेशिक-मंत्री बने और सन् १९३५ तक, सभी सरकारों के अधीन, इसी पद पर रहे। ममारिक दी मृत्यु के बाद, १८ दिसम्बर सन् १३५ को, बहू राष्ट्रपति चुने गये। वह सदैव प्रजातंत्र के समर्थक रहे । २२ अक्टूबर १९३८ को वह चेकोस्लोवाकिया त्याग पर प्रिमरोजा गये और शिकागो विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिये । दुनाई