३७,५०,००,०००। ब्रिटेन का राजा भारत का सम्राट् कहलाता है। भारत ब्रिटिश-शासित और देशी राज्य दो प्रमुख भागों में बँटा हुआ है।
सन् १९०५ के बङ्ग-भङ्ग के बाद उठे हुए आन्दोलन के फलस्वरूप १९०९ में मिन्टो-मार्ले-सुधार भारत को ब्रिटिश-शासन की पहली, राजनीतिक सुधारों की, नाम-मात्र की देन थी। उपरान्त सन् १९१७ में स्वर्गीया श्रीमती ऐनीबेसेन्ट और लोकमान्य तिलक के होम-रूल आन्दोलन के प्रतिफल में, २० अगस्त सन् १९१७ को तत्कालीन भारत-मन्त्री मि॰ मान्टेग्यू ने ब्रिटिश पार्लमेन्ट में घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार की नीति का अन्तिम लक्ष्य "ब्रिटिश-साम्राज्य के अन्तर्गत उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है।" उपरान्त मान्टेग्यू साहब स्वयं भी भारत पधारे और तत्कालीन नेताओं से उन्होंने भेंट की। इसके बाद, सन् १९१९ में, भारतीय-शासन-विधान बना, जिसके अनुसार प्रातों में नई धारासभाएँ स्थापित की गईं, मर्यादित मताधिकार दिया गया, साथ ही प्रान्तों में वैध-शासन-प्रणाली (Diarchy) की स्थापना की गई। इसके अनुसार प्रान्तीय सरकार को दो भागों में बाँट दिया गया। शासन विभागों को 'हस्तान्तरित' (Transferred subjects) और सुरक्षित (Reserved subjects) नाम दिये गये। हस्तान्तरित विषयों में शिक्षा, उद्योग, कृषि तथा स्वायत्त-शासन आदि रखे गये। सुरक्षित में पुलिस, मालगुज़ारी, अर्थ-विभाग, आदि। सुरक्षित विभाग गवर्नर की एक कौंसिल के अधीन रखे गये, जिसमें २ से ३ तक सदस्य नियुक्त किये गये। हस्तान्तरित विषयों को प्रान्तीय धारासभा के निर्वाचित सदस्यों के प्रतिनिधियों को सौंपा गया। यह प्रतिनिधि गवर्नर की कौंसिल के अधिवेशनों में शामिल नहीं होते थे। सन् १९१८ में राष्ट्रीय महासभा ने, इस विधान के प्रकाशित होने के अवसर पर, इसे अपर्याप्त, असन्तोषजनक और अनुपयोगी बताया।
एक ओर शासन-विधान बनकर तैयार हुआ, दूसरी ओर सन् १९१९ के आरम्भ में ही सरकार ने रौलट कानून बनाने की तैयारी कर दी। महात्मा गांधी ने इसके विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन छेड़ने की घोषणा की। पंजाब में फौजी शासन जारी हुआ और अनेक अत्याचार हुए। इसके साथ ही, गत महायुद्ध के बाद, वरसाई की सन्धि में तुर्की के साथ हुए अन्याय से भारतीय मुसलमान