पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२३४
भारत
 

अनेक बयान निकाले। एक बयान में उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि यह सत्याग्रह-आन्दोलन अंगरेजों, मुसलमानों अथवा किसी दल के भी विपरीत नहीं किया जा रहा है। यह तो भारतीय जनता को स्वतन्त्र बता कर उसे ज़बरदस्ती लड़ाई मे शामिल करने के व्यवहार के विरुद्ध एक प्रबल नैतिक प्रतिरोध है। उन्होंने इसी वक्तव्य में यह भी कहा कि भारत को स्वतन्त्र करने के मार्ग में अधिकारियो द्वारा भारतीय मतैक्य का बहाना लेने का मार्ग गलत और काल्पनिक है। सत्याग्रह में २५००० व्यक्ति जेल गये और वह चौदह महीने जारी रहा।

अप्रैल १९४१ में बम्बई में, सर तेज बहादुर सप्रू के नेतृत्व में निर्दल सम्मेलन हुआ। सर तेज ने अपने भाषण में कहा कि, "जनमत की अवहेलना जैसी वर्तमान भारत-सरकार ने की है वैसी किसी अन्य भारतीय सरकार ने नहीं की थी। सम्मेलन ने, ब्रिटिश कामनवैल्थ के देशों की भाँति ही भारतीय जनता को, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में पूर्ण अधिकार की माँग की। लड़ाई के बाद, एक निश्चित अवधि के भीतर, भारत को बरतानिया और उसके उपनिवेशो जैसे अधिकार दिये जाने की स्पष्ट घोषणा किये जाने का भी मतालबा किया गया। सर तेज इन प्रस्तावों को ले जाकर वाइसराय से भी मिले। कुछ दिन बाद भारत-मन्त्री ने कामन-सभा में बोलते हुए जवाब दे दिया कि भारत की समस्या को भारत की जनता ही, आपस में समझौता करके, सुलझा सकती हैं।

इसी महीने में मदरास के लीग के जलसे में, सभापति पद से बोलते हुए, मि॰ जिन्ना ने कहा––"मैं इस मंच से बलपूर्वक कह देना चाहता हूँ कि भारत में ब्रिटिश सरकार की निकम्मी, कमजोर और अनिश्चित नीति योरप की उसकी वर्तमान नीति से भी अधिक विनाशकारी सिद्ध होने को है। इन लोगों को क्यों नही सूझता कि घटनायें कैसी तेज़ी से घट रही हैं और नकशे कितनी जल्द-जल्द बदल रहे हैं?"

मई में मि॰ जिन्ना ने एक गश्ती पत्र निकाल कर कहा कि हम लड़ाई और भारत-रक्षा के आयोजन में सहयोग देने को तैयार हैं बशर्ते कि केन्द्रिय और प्रान्तीय सरकारो में लीग के प्रतिनिधियों को सच्चा और सारपूर्ण भाग दिया जाय।

भारत के माडरेटों के अतिरिक्त ब्रिटेन में भी भारत की समस्या के सम्बन्ध