इस देश-व्यापी घोर दमन से जनता में रोष पैदा होगया और पंजाब और सीमाप्रान्त को छोड़कर शेष सभी प्रान्तों में जनता ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह करना शुरू कर दिया। रेल की पटरियाँ उखाड़ी गईं। टेलीफोन और टेलीग्राफ के तार काट डाले गये। डाकख़ाने तथा पुलिस की चौकियाँ और थाने जला दिये गये अथवा लूट लिये गये। पुलिस तथा फौज के अफसरों की हत्यायें की गईं। डिपुटी मजिस्ट्रेटों तथा पुलिस कप्तानों आदि पर भी आक्रमण किए गए। सरकारी आफिसों में आग लगाई गई। रेलवे स्टेशनों में आग लगा दीगई। मदरास, बंबई, बिहार और संयुक्त-प्रदेश के पूर्वी भागों में इस विद्रोह ने भयंकर रूप धारण कर लिया। मदरास और बिहार प्रान्त के कई स्थानों पर १००० या इससे भी अधिक सशस्त्र भीड़ ने भयंकर उपद्रव किए।
सरकार ने भी इन उपद्रवों के दमन के लिये प्रान्तीय सरकारों को पूरे अधिकार देदिये और भारत में अर्डिनेंस-राज और पुलिस-राज का जैसा भयानक दौरदौरा इन दिनों देखने में आया, वैसा ब्रिटिश शासन-काल में शायद ही कभी देखने में आया हो। २४ सितम्बर १९४२ को इस सम्बन्ध में वाइसराय की शासन-परिषद् के कानून-सदस्य माननीय सर सुलतान अहमद ने भारतीय केन्द्रिय असेम्बली के समक्ष अपने भाषण में बतलाया कि:––
२५० रेलवे स्टेशनों को नष्ट किया गया अथवा उन्हें हानि पहुँचाई गई। ५५० डाकख़ानों पर हमले किए गए, ५० डाकख़ाने बिलकुल जला दिये गए और २०० को भारी नुकसान पहुँचाया गया। ३५०० से भी अधिक तार काटने की घटनाएँ हुई। ७० थाने और पुलिस चौकियों और ८५ सरकारी इमारतों पर हमले किए गए। ३१ पुलिस के लोग मार डाले गए और घायलों की संख्या इससे कई गुनी है। १८ फौज के अफसर मारे गये या घायल किए गए। ६० स्थानों पर फौज ने गोली चलाई। ६५८ जनता के व्यक्ति मारे गए। १००० जनता के लोग घायल हुए। सर सुलतान अहमद ने अपने भाषण में कहा कि कुछ हताहत व्यक्तियों को उपद्रवकारी उठाकर लेगए। इसलिए हताहतों की कुल संख्या २००० के लगभग होगी।
२२ सितम्बर को कौंसिल आफ् स्टेट् के समक्ष माननीय सर मुहम्मद उसमान (डाक तथा हवाई विभाग के सदस्य) ने अपने भाषण में इन उपद्रवों