७ घायल हुए। (७) हवाई सेना को भी दमन में प्रयोग किया गया। भीड़ पर बम बरसाये गये। गाँवों, क़स्बों और नगरों पर कितना जुर्माना किया गया, इसकी कोई सूचना सरकारी तौर पर प्रकाशित नहीं हुई है। जुर्माने की अदायगी से मुसलमानों और सरकारी मुलाजिमों को मुस्तसना कर दिया गया।
भारत-सरकार के गृह-सदस्य सर रेजीनाल्ड मैक्सवैल के केन्द्रिय असेम्बली में, १२ फरवरी १९४३ को दिये गए वक्तव्य के अनुसार, ३१ दिसम्बर १९४२ तक भारत में ५३८ बार गोलियाँ चलाई गईं। पुलिस और फौज की गोलियों से ९४० व्यक्ति मारे गए और १६३० व्यक्ति घायल हुए। ६०,२२९ व्यक्ति इन उपद्रवों में गिरफ्तार किए गए। सन् १९४२ के अन्त तक २६,००० व्यक्तियों को दण्ड दिया जा चुका था। भारत-रक्षा-विधान की धारा २६ और १२९ के अधीन १८,००० व्यक्तियों को नज़रबन्द किया गया।
भारत-सरकार ने गृह-विभाग की ओर से मार्च '४३ में, जबकि गाँधीजी ने २१ दिन का उपवास रखा था, "१९४२-४३ के उपद्रवों के लिये कांग्रेस का दायित्व" (Congress Responsibility for Disturbanecs of 1942-43) नामक एक पुस्तक प्रकाशित कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि महात्मा गाँधी और कांग्रेस इन उपद्रवों के लिये उत्तरदायी हैं। परन्तु महात्मा गांधी ने, जैसा कि उनके और वाइसराय लार्ड लिनलिथगो के बीच हुए पत्र-व्यवहार से स्पष्ट है, इन उपद्रवों के लिये कांग्रेस को नहीं सरकार को दायी ठहराया है।
इस प्रकार भारत के राजनीतिक सङ्कट की समस्या बिना सुलझी पड़ी है। अप्रैल १९४३ में प्रेसिडेन्ट रूज़वैल्ट के विशेष प्रतिनिधि, मि॰ विलियम फिलिप्स, को भी महात्मा गांधी से जेल में भेंट करने की अनुमति नहीं दी गई। कामन्स में, प्रश्नोत्तर के समय, ६ अप्रैल १९४३ को भारत-मन्त्री के एक उत्तर से, जो उन्होंने एक मजदूर[१] सदस्य को दिया था, ज्ञात हुआ कि पं॰ जवाहरलाल नेहरू को भारत से बाहर नहीं भेजा गया है और उनसे ब्रिटिश पार्लमेंट का कोई सदस्य पत्र-व्यवहार नहीं कर सकता। [इसके सम्बन्ध की अन्य घटनाओं की जानकारी के लिए पुस्तक के अन्त में, परिशिष्ट के अन्तर्गत, गांधी-लिनलिथगो-पत्र-व्यवहार, गांधीजी का इक्कीस दिन का व्रत, सर्वदल-नेता-सम्मेलन आदि देखिये]
- ↑ 'लेबर पार्टी' के सदस्य से आशय