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भारतीय राष्ट्रीय उदार संघ २४७ फेंक दिया है । यद्यपि कांग्रेस का अनुसरण कर लीग ने भी अपना प्रकाश्य उद्देश भारत की मुकम्मल अज़ादी बना लिया है, किन्तु वह राष्ट्रीय-स्वातन्त्र्य की विघातक विभाजन-नीति पर आरूढ़ है । जिस मुसलिम लीग को राजनीतिक सन्तुलन में देश में कोई प्रभाव नहीं रहा, जिसके उद्देश और नेता के करोडो मुसलमान विरोधी हैं, आज उस लीग के मतालवे का वरतानिया और अमरीका में बडा प्रचार किया जारहा है और उसे एक प्रवल शक्ति बताया जा रहा है, तथा भारतीय प्रगति-विरोधी शक्तियों लीग का अाश्रय लेकर, अपने निराधार और स्वार्थपूर्ण प्रचार के बल पर, उससे क्षणिक, किन्तु भरपूर, लाभ उठा रही हैं। भारतीय राष्ट्रीय उदार संघ--कांग्रेस में सन् १९०७ से ही, उद्देशों के सम्बन्ध में, दो विचार-धाराये उत्पन्न होचुकी थीं, जिन्हें नरम तथा गरम दल कहा जाने लगा था । सन् १९१७ तक कांग्रेस मे, यदि तत्कालीन भावनाशब्दों में कहा जाय तो, वस्तुतः क्रियाशील देशभक्तो का कोई विशेष स्थान नहीं था । कांग्रेस निष्क्रियतावादी नरम दलवालों की सस्था थी और उन्हींके हाथ में उसकी बागडोर थी । सन् १९१८ मे जव, भारतीय शासन-सुधारों के संबंध में, मांटेग्यू-चेम्सफर्ड रिपोर्ट प्रकाशित हुई, तब काग्रेस में इस प्रश्न पर विवाद उठ खड़ा हुआ कि इन सुधारों को अस्वीकार किया जाय या स्वीकार । नरम दल के कांग्रेस-जन इन सुधारों को कार्यान्वित करने के पक्ष मे थे । अगस्त १६१८ में बम्बई में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुशा और सुधारों को असन्तोपजनक, अनुपयुक्त ग्रौर अपर्याप्त बताया गया । नरम दल के लोग इस अधिवेशन में शामिल नहीं हुए। उन्होंने बम्बई में अखिल-भारतीय नरम दल सम्मेलन अलग किया । बाबू (वादके सर) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी इसके सभापति बने । इस सम्मेलन में यह निश्चय किया गया कि कांग्रेस ले पृथक रह्कर नरम दल अपना कार्य करे। दिगम्बर १९१८ में कलकत्ता में इस दल का फिर सम्मेलन हुआ। सयें नाम 'श्राल-डिया लिवरल ड्रेशन' रचा गया। बाद में नाम ददराकर भारतीय राष्ट्रीय उदार संघ ( Indian National Liberal Federatio11 ) कर दिया गया एस दल र मुख्य उद्देश्य केवल 'वैध' साधनों के द्वारा वैधानिक अान्दो