भारतीय राष्ट्रीय महासमा
लनें करना है।यह सहयोग सत्याग्रह और सीधे कार्य के विरुद्ध है।इसका लक्ष्य ब्रिटिश राज्य का अन्तार्गथ औपनिवेशक स्वराज्य प्राप्त करना है।यह दल सरकार की नीति ,शासन प्रबन्ध तथा वैधानिक समस्याओं पर सरकार की नीति की आलोचना करता है। असंथोप प्रकट करता है तथा निध भी करता है।परंथु निश्चयथा तथा परामकोपषित ही राजनिति की रीड है। यह संसथा उच्च वर्ग अर्धसरकारी तथा सरकार के कृपापाथ्रो और राजभक्तो की संस्था है। इसमें देश के बड़े बादइ पूजिपथि, बैंकर और मिल माँँलिक शामिल है। जनता ने ईस्का कोई संपर्क नहीं और न जनता का इसमें कोई प्रभाव है ।प्रति वर्प दिसंबर में देश के किसी बड़े नगर में इसके सालआना अधिवेशन होती हैं। वर्तमान मैं प्रान्तीय धारा समाक्षो में इस दल का कोई प्रभाव नहीं रहा।इस दल में देशबहादुर सपर, स्वर्गीय चिन्तामणि और होनोरबल हृदयनाथ आदि सरीके विध्वान और देशप्रेमी व्यक्ति भी रहे, जिन पर कोई भी देश् गर्व कर सकता है।सर् यग्नेश्वर चिन्तमणि ने तो 1616 मे विदान क अनुसार बनी प्रांतीय धारा समां में सदस्य के बाँथि और उसके उपरान्त मिनिस्टर के हैसीयत से,देश् की प्रशंशनीय सेवाएँ की और लीडर के सअम्पआधक के स्थिति में तो उनकी देश सेवाएँ अनुपाता तह बहुमूल्य हुई है।उनकी अथुलानिया प्रतिभा और संपाधन निपुरथा तथा मानसीक सदाशयता पर आज भी और आगामी स्वतत्र भारत समुचित रूप से गर्व करता रहेगा। भारतीय राष्ट्रीय महासमा-यह भारत राष्ट्र के महान, प्रभावशाली तथा शक्तिशाली राष्ट्रीय संस्था है।हेलेन ऑक्टविओर नामक पेंशनर सिविलियन ने भारतीय राष्ट्रीय महासमा के स्थापना में मुक्य भाग लीया। दिसम्बर १८८५ में इसकी स्थापना बम्बई में की गई। प्रारम्ब मे इसका उद्देश, ब्रिटीश साम्राज्य की छत्र्छाया में, भारतीयों के लिये क्रमश: अधिकार प्राप्त करने का प्रयत्न करन था। पुलिस, सेना तथा सरकार के उच्च विभागो में उच्च पदो पर भारतीयों की नियुक्कियो के लिये आन्दोलन करना ही इसका मुख्य उद्देश था। सन् १६०७ में, सूरत-