पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२५६

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भारतीय राष्ट्रीय महासभा देश आन्दोलन की स्थिति में रहा । १६२८ में साइमन जॉच-कमीशन अाया, जिसका काग्रेस द्वारा बहिष्कार किया गया । फिर भी उसकी रिपोर्ट तैयार हुई और साथ ही नेहरू कमिटी की रिपोर्ट भी । सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की सिफारशों को नहीं माना । फलतः, रिपोर्ट पेश करते समय ब्रिटिश सरकार को दीगई पूर्व सूचना के अनुसार, सन् ३० में नमक-सत्याग्रह शुरू कर दिया गया । सन् १९३१ मे चुनाव फिर आये । काग्रेस ने इनमें क्रियात्मक सहयोग नहीं दिया । किन्तु प्रतिक्रियावादियों को धारासभायों में घुसने से रोकने के लिये, व्यक्तिगत रूप से, कांग्रेस-कार्यकर्ताओं ने, जगह जगह से, अछूत और निम्न कोटि के कहे जानेवाले देशवासियों को उम्मेदवार खडा किया और चुनावों मे यथेष्ट सफलता प्राप्त की। मेहतर तक नरेबल मेम्बर बन गये । सन् ३१ मे भद्र अवज्ञा आन्दोलन चला और गान्धी-इरविन समझौते के रूप मे वह व्यवहारतः समाप्त नहीं हुआ, क्योंकि सरकार का दमनकारी रुव नहीं बदला था । सन् १९३४ में काग्रेस ने सत्याग्रह स्थगित कर दिया। इसके बाद जब नया शासन-विधान बनाने की तैयारी की जारही थी तब कांग्रेसी नेताओं को प्रलोभन उत्पन्न हुश्रा, अथवा मोर्चे से निराश लौटे हुए एक सेनानी ने दूसरे मोर्चे को आजमाने की बात फिर सोची । तय किया गया कि नवीन असेम्बलियो में प्रवेश कर अड़गा नीति का अवलम्बन किया जाय । सन् १९२६ की भॉति गान्धीजी उदारतापूर्वक इस दल के समक्ष फिर झुके । सत्याग्रह के स्थगित होजाने से अब काग्रेस के समक्ष कोई क्रान्तिकारी कार्यक्रम नही रहा था । इसलिये महात्मा गान्धी तो वर्धा को अपना केन्द्र बनाकर ग्राम-सुधार तथा ग्रामोद्योग आन्दोलन के सचालन में लग गये और दूसरी ओर विधानवादी मनोवृत्ति के काग्रेसी, जिनका कांग्रेस में विशाल बहुमत होगया था, सन् १९३४ के केन्द्रीय असेम्बली के चुनाव की तैयारी मे लग पडे । डा० विधानचन्द्र राय, डा० असारी, श्री भूलाभाई देसाई, प० गोविन्दुवल्लभ पन्त, श्री सत्यमूर्ति विधानवादी-दल के प्रमुख नेता थे । काग्रेस-पालमैटरी बोर्ड बनाया गया और केन्द्रीय चुनाव में सफलता प्राप्त करने के लिये ज़ोरदार आन्दोलन हुआ । कांग्रेस-दल के ४४ सदस्य केन्द्रीय असेम्बली में चुने गये। यह केन्द्रीय असेम्बली का सबसे बड़ा दल था। कांग्रेस में कुछ व्यक्ति