पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतीय राष्ट्रीय महासभा ऐसे भी थे जिन्हे न विधानवाद पसद था और न गान्धीजी का ग्राम-सुधार तथा ग्रामोद्योग कार्याक्रम हो। अत:उन्होने समाजवादी विचारधारा को अपनाया। वे मज़दूरो तथा किसानोका संगठ्न करने मे लग पडए तथा समाजवादी दल संगठित हुआ। इस दल के अग्रगएय आचार्य नरेन्द्र्देव, श्री जयप्रकाशनारायण तथा श्री सम्पूणनिन्द आदि थे। महात्मा गान्धी ने यद्यपि अपना ग्रामोद्योग संघ जारी रखा तथा खादीप्रचार आदि रचनात्मक कार्यक्र्म पर ज़ोर दिया, परन्तु उन्होने विघानवादियों को आशीर्वाद दिया। किन्तु विधानवादियो को केन्द्रिय असेम्बली से फिर भी निराश लौट्ना पडा। सन १९३६ के चुनाव मे कांग्रेसी उम्मीदवारो की ५ प्रान्तो मे, भारी बहुमत से, प्रान्तीय असेम्ब्ली के चुनावो मे, जीत हुई, और मार्च १९३७ मे, गन्दीजी के प्रभाव से, यह प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि पद-ग्रहण किया जाय। तीन मास तक गवर्नरो के विशेषाधिकारो के प्रशन के स्पष्टीकरण के सम्ब्न्ध मे कांग्रेस और सरकार के बीच भभट चलता रहा। एक प्रकार का वैग्यानिक संकट उत्पन्न हो गया। गवर्नरो ने अस्थायी मत्रि मन्डल बना लिये, परन्तु असेम्ब्ली के अधिवेशन तीन मास तक आमन्त्रित न किये जासके। अन्त मे गवर्नरो को स्पष्ट आश्वासन देना पडा और तब कांग्रेस मन्त्रिमनडल बने। सन १९३६-३७ मे लखनऊ तथा फैज़्पुर-कांगेस के सभापति प्ं० जवाहरलाल नेहरू थे। सन १९३५ मे श्री सुभाषचन्द्र बोस सभापति चुने गये। सन १९३६ मे श्री बोस के चुनाव पर बडा विवाद खडा होगया। महत्मा गान्धी, जो कांग्रेस के एकमात्र सचालक हैं, नही चाहते थे कि इस बार पुन: श्री बोस सभापति चुने जाये। सब गान्धीवादी नेताओ तथा उनके अनुयायियो ने डा० पट्टाभि सीतारामय्या को, सुभाष बाबू के विरुध, खडा किया। परन्तु खुल्लमखुल्ला गांधीजी की ओर से यह घोषणा नही की गयी कि डा० सीतारमय्या को उन्होने खडा किया है। ऐसा वह कर भी नही सकते थे। अन्त मे श्री सुभाषचन्द्र बोस सभापति चुने गये। इससे यह सिद्ध होगया कि कांग्रेस मे वाम-पत्दी-दल क प्राधान्य होगया था। जनता गांधीजी की नीति से सन्तुष्ट नही थी। चुनाव