सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
भारतीय राष्ट्रीय महासभा
२५१
 

ऐसे भी थे जिन्हे न विधानवाद पसद था और न गांधीजी का ग्राम-सुधार तथा ग्रामोद्योग कार्यक्रम हो। अतः उन्होने समाजवादी विचारधारा को अपनाया। वे मज़दूरों तथा किसानो का संगठन करने मे लग पडे तथा समाजवादी दल सगठित हुआ। इस दल के अग्रगण्य आचार्य नरेन्द्रदेव, श्री जयप्रकाशनारायण तथा श्री सम्पूर्णानन्द आदि थे।

महत्मा गांधी ने यद्यपि अपना ग्रामोद्योग सघ जारी रखा तथा खादी-प्रचार आदि रचनात्मक कार्यक्रम पर ज़ोर दिया, परन्तु उन्होने विधानवादियों को आशीर्वाद दिया। किन्तु विधानवादियो को केन्द्रीय असेम्बली से फिर भी निराश लौटना पडा। सन् १९३६ के चुनाव मे कांग्रेसी उम्मीदवारो की ८ प्रान्तो मे, भारी बहुमत से, प्रान्तीय असेम्बली के चुनावो मे, जीत हुई, और मार्च १६३७ मे, गांधीजी के प्रभाव से, यह प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि पद-ग्रहण किया जाय। तीन मास तक गवर्नरो के विशेषाधिकारो के प्रश्न के स्पष्टीकरण के सम्बन्ध मे काग्रेस और सरकार के बीच झझट चलता रहा। एक प्रकार का वैधानिक सकट उत्पन्न होगया। गवर्नरो ने अस्थायी मंत्रिमण्डल बना लिये, परन्तु असेम्बली के अधिवेशन तीन मास तक आमन्त्रित न किये जासके। अन्त मे गवर्नरो को स्पष्ट आश्वासन देना पडा और तब कांग्रेस मन्त्रिमण्डल बने।

सन् १६३६–'३७ मे लखनऊ तथा फैज़पुर-कांग्रेस के सभापति पं॰ जवाहरलाल नेहरू थे। सन् १९३८ मे श्री सुभाषचन्द्र बोस सभापति चुने गये। सन् १६३६ में श्री बोस के चुनाव पर बड़ा विवाद खडा होगया। महात्मा गाधी, जो कांग्रेस के एकमात्र सचालक हैं, नही चाहते थे कि इस बार पुनः श्री बोस सभापति चुने जायॅ।

सब गाधीवादी नेताओ तथा उनके अनुयायियो ने डा॰ पट्टाभि सीतारामय्या को, सुभाष बाबू के विरुद्ध, खडा किया। परन्तु खुल्लमखुल्ला गांधीजी की ओर से यह घोषणा नही की गई कि डा॰ सीतारामय्या को उन्होने खडा किया है। ऐसा वह कर भी नही सकते थे। अन्त मे श्री सुभाषचन्द्र बोस सभापति चुने गये। इससे यह सिद्ध होगया कि कांग्रेस मे वाम-पक्षी दल का प्राधान्य होगया था। जनता गांधीजी की नीति से सन्तुष्ट नही थी। चुनाव