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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२५८

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२५२ भारतीय व्यापारी मएढल-संघ्

के परिणाम के प्रकाशित होजाने के बाद महात्मा गान्दी ने अपने एक व्यक्तव्य मे डा० सीतारामेया की पराजय को अपनी पराजय बतलाया। कांग्रेस-कार्य-समिति के सदस्यों से गांधीजी ने त्याग-पत्र दिला दिये और यह कांग्रेस का आन्तरिक सकट तथा गांधीवादी नेताओ का श्री बोस के साथ असहयोग उस समय तक बराबर जारी रहा जब तक कि,मई १९३६ में, उन्होने राष्ट्पति के पद से त्याग-पत्र नही देदिया।सुभाष बाबू ने काग्रेंस से अलग होकर 'फारवर्ड व्लाक' बनाया। चुनाव-सम्ब।धी एक व्यक्तव्य के कारण सुभाष बाबू के विरुद्ध अनुशासन की कार्यवाही कीगई और वह कांग्रेस से पृथक कर दिये गये। इसके बाद शेप समय के लिये बाबू राजेन्द्र्प्र्साद राष्ट्रपति चुने गये। इसके बाद शेप समय के लिये बाबू राजेन्द्र्प्र्साद राष्र्पति चुने गये। सन १९४० के अधिवेशन (रामगढ)के लिये मोलाना अब्दुल कलाम आज़ाद राष्ट्र्पति निर्वाचित हुये,जो अब तक है।

कांग्रेस का सालाना अधिवेशन प्र्ति वर्प नियत स्थान पर होता रहा है और सन १९३७ से किसी ग्राम मे होने लगा है। इसमे १ लाख से ३ लाख तक कांग्रेज़ तथा जनता भाग लेती है। एक सप्ताह तक बडा समारोह रह्ता है। सन '४० के बाद, विशेष परिस्थितियो के कारण, कांग्रेस का आधि-वेशन नहीं हुआ है।(विशेष जानकारी के लिये पढिये- 'भारत') भारतीय व्यापारी-मन्ड्ल संघ (फेडरेशन आफ इन्दियन चेम्बर्स आफ कामर्स)-बम्बई के प्रतिष्ठित व्यापारी सर फजलभाई करीमभाई ने, सन १९१३ मे, इन्दियन कामर्स कांग्रेस नामक स्ंस्था स्थापन करने का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य भारतीय व्यापार के हितो की रक्षा करना था। सन १९१५ मे इस कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन बम्बई मे हुआ, जिसके स्वागताध्यक्श सर दीनशाह बाचा थे, और सर फजलभाई करीमभाई अध्यक्ष। उक्त कांग्रेस ने एक प्र्स्ताव द्वारा एसोशियेटेड चेम्बर आफ कामर्स की स्थापना के लिये एक प्रान्तीय कमिटी नियुक्त की। सद्स्य बनाने तथा रजिस्टी कराने का कार्य इस समिति को सौपा गया। किन्तु इसका कार्य अनेक वर्षों तक शिथिल रहा। सन १९२३ मे, विनिमय-दर के महत्वपूर्ण प्रश्न्न के उपस्थित हो जाने के कारण, व्यापारी-समाज फिर जाग्र्त होगया और सन १९२३ मे ली तथा १९२७ मे कलकत्ता की व्यापारिक कांग्रेसो मे व्यापक व्यापारी-