२७० मखसैबाद पुत्र । ९ वर्ष की अत में ही पिता का देहान्त होगया । रियासत कैस आए वाद; "७१ने सजाए में होगई । बी० ए० तक परिन्दा प्राप्त की । १९०३ में सपन्होंक योरप यम" की । सन १९०९ में छोजितो1यो-क रिव उम प्रचार", जिसमें राजा साहब की विशेष रुचि धी, वृन्दावन मैं प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की । २०३००१हाँ सालाना बसी आमने की जमीदारी तथा निजी राजभवन विद्यालय को दान में दे (देले । गुरुकुल वृन्दावन पेशे, अयटूबर १९१ ( आ १५१० ० 'हाँ मूल: की भूरे दी । इसी भूने पर नुरुल/ल विध्यावेब१- लय का भवन बनाया गया है । हिन्दी सासा'हिव; पाद की (स्थापना की तथा उसका सपादन किया । सन् १९१२ में दूसरी बार योरप भये तथा सर १९१४ में तीसरी बार है साथ में गुरुकुल कतरा-सी के प्रथम स्नातक, महात्मा पु४शीराम ( स्व" स्वामी श्रद्धानन्द ) के को पुत्र हरिश्चन्द्र विद्या- लकीर को अपना प्राइवेट सेकेटरी बनाकर लेती है उसी समय से यह टियर-: लरलेणा, जर्मनी, कान्त, तुविपन, सोवियत रूस, अफगानिस्तान, उरापान आदि में भ्रमण कर भारतीय स्वाधीनता के पक्ष में छोकमत -बनाते और विश्यव९धुत्व का प्रचार करते रहे हैं । राजा साहब मानवतावाद के- प्रबल समर्थक है । इसी भावना से प्रेरित होकर, सन् १९१२ भी सबसे पूर्व, अछूत की (जानेवाले सम्प्रदाय कोइस प्रेम- पुजारी ने अव्यावहारिक रूप में अपनाया । विश्व-बन्धुत्व तथा अन्तरोंहीयता के वह पोषक और रणाय स्वाधीनता के सन्२चे उपासक हैं । उन्हें स्वदेश नापस अपने की आना नहीं है । केन्दीय असेम्बली में इस प्रतिबध के- हटाने का प्रवाल दिया गया, परन्तु सफलता नहीं मिली है (येछले तीन यत् से उनके सम्बन्ध मैं केह समाचार नाहीं सुना गया । मावर्मवाद४---कार्ध: मार्क्स के सिद्धमतानुसार समाजवादी विचारधारा । मार्क्स का, यह वश से जर्मनी बासर १८१८ मे, जन्य हुआ और सर १८८३ मे, लन्दन मे, मृत्यु । मार्क्सवाद मौतिकतावादी समाज-शाख है । वह जर्मन दार्शनिक, हरित, और बो-रिज अर्णलबी, रिकानों, :के ब्रजात्मक मौतिकवाद पर अजित है । उसकी दृष्टि में मानव की समस्त आध्यात्मिक, मानसिक और सासजीझे उन्नति तथा उसके ।वेकास का भूताधार आर्थिक है ।
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