पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२७७

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माफ्लेवाद २७१ अर्थ ही जीवन में प्रधान है, समाज की रीढ़ है । मावतै न ईश्वर मे विस्वास कस्ता था ओंर न वह आत्मा की सत्ता को ही मानता था । भादर्त का यह वाक्य प्रसिद्ध है कि…"सारे भानवक्वेंसमाज का बिगत तथा आधुनिक इतिहास वर्गचंघर्ष का इतिहास है ।” १७वीं से १९वीं शताब्दी तक पूजीवादियों ने सामन्तशाही का नाश किया । कूँरिवाद ने स्वतत्र होकर ससारै मे आश्चर्यजनक शति से पैदावारमे वृद्वि की परन्तु पूँजीवाद की कोखमे उसका नाश करनेवाला जन्म ले चुका था । वह है सर्वहारा वर्ग 1 इस वर्ग द्वारा ही पूँड्डापैवाद का पतन संभव हो सकेगा । मज़कू की पैदावार ही मूरूहूँ है, औरकिसी बस्तु का यथार्थ मूल्य उस समय के वरावर है जो उसकी पैदावार मे लगता है । परन्तु मज़दृदु को पूरे समय का वेतन नहीं देता । वह उसे कम देता है और जो बचता है वह 'अतिरिक्त अर्थ' होता है । मज़दूरों को कम वेतन स्वीकार करना पडता है अन्यथा उनकी जगह दूसरे बेकार मज़दूर, इतने ही वेतन पर, काम करनेके लिथेतैयार रहते हैं । व्यावसायिक प्रगतितथा मनुष्यों की जगह मशीनी के प्रयोग के कारण मज़हूँब्ब का इस ओर आकर्षण होता है । इस प्रकार वेतन ( मज़दूरी ) तथा ओद्योगिक पैदावार मे सामजस्य रेंथाक्ति नहीं दोपाता ओर क्रय-शक्ति तथा पैदावार मेपृइत्त असामजस्यकै कारण ही५ आर्थिक संकट पैदा होंजाते है । इस प्रकार कूँगेपति मालामाल होजाते हें । वडे कूँरौपति छोटे पूँजीपतियोंका शोषण करते हैं ।जितनेवडे पूँवोपति होते उतने ही उनके कारखानों मे नई तथा थोडे समय ने, क्या की सहा-हुँटता से अधिक माल तैयार करनेवालो, मशीनें काम क्ररतो है मे बेकारी और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है तथा मड़हुँमृ कौ द्रेन्ननं क्या मिलता है! अन्त से आर्थिक संकट पैदा होजाता है। ओद्योगिक उत्कर्ष के वावजूद मड़ाकू का जीवन८ दिन पर दिन, शोषण का बनता जाता है l । हूँबीबाट की यह विशेषता है कि नह एक ओर घन-र्मचप हाना हैं. तो दूसरी कोर विशाल जनसमुदाय में गरीबी, बेकारी तपा टारिद्रत्वं का णेफ्ला ब्धटा है । एक ऐसी अवस्था 'देदा होंजाती है" है ऐल भर हँटझेघबि विशाल उठाता जो भरपेट अल देने की २न्दयस्था भी नहीं कं पाने १ दंभी मृदृनरुया से कान्ति जा जन्म जोता है । खुद्यझें_टुरग प्मुंहैंच्थ्