अन्तर्गत रहते हुए, मजदूरो का सुधार करना मानता है। पहले वह समझौते से काम लेता है, और जरूरत पड़ने पर मालिको से संघर्ष भी किया जाता है। इस संघ का संस्थापक सेम्युअल गोम्पर्स अपनी मृत्यु (सन् १९२४) पर्यन्त इसका अध्यक्ष रहा। तब से विलियम ग्रीन इसका अध्यक्ष है। इस संघ के अन्तर्गत मजदूर-सभाओ के सदस्य दक्ष मजदूर ही होते है। इसका अमरीका मे काफी प्रभाव है। सन् १९३६ में 'औद्योगिक संगठन-कारिणी समिति' नामक एक दूसरी मजदूर-सस्था की स्थापना की गई। इस सस्था ने अल्पकाल मे ही आश्चर्यजनक उन्नति कर दिखलाई। सन् १९३८ मे इसके ४०,००,००० सदस्य थे। ससार-व्यापी द्वितीय महायुद्ध के समय, जब अमरीका भी लडाकू राष्ट्रों मे सम्मिलित होगया, यहाँ के हथियार बनानेवाले कारखानों मे, सन् १९४१ मे, कई बार हडताले हुई। मजदूरो ने वेतन-वृद्धि की माँग की। रूजवेल्ट ने खुद इन हडतालो मे बल-प्रयोग किया, क्योकि वह अमरीका का सेनापित भी है। कारखाने कई दिनो तक फोजी-सरक्षण मे चलाने पडे। अंत मे मजदूरो की माँगे स्वीकार करली गई।
अरब--अरब जाति की कुल सख्या ५ करोड़ है। १ करोड़ अरब, अरब देश मे है, ४० लाख अरब शाम मे, ३५ लाख इराक मे, १० लाख फिलिस्तीन मे, १ करोड़ ४० लाख मिस्र मे, ७ लाख लीबिया में, २३ लाख ट्यू निशिया मे, ६० लाख अलजीरिया और ७० लाख मरक्को मे हैं। सिर्फ अरब देश के अधिवासी सभी अरब सामी(Semitic) नस्ल के हैं, दूसरे देशो के अरब वर्णसकर है। अरबो मे राष्ट्रीयता की भावना सबसे प्रथम सन् १८४७ मे शाम(सीरिया) मे उदय हुई। अरबों की स्वाधीनता का संघर्ष पहले-पहल तुर्की के विरूद्ध शुरू हुआ, क्योंकि अधिकांश अरब देशों पर उसका ही प्रभुत्व था।
सन १९१४-१८ के विश्वयुद्ध मे अरबों ने तुर्की के विरूद्ध ब्रिटेन का साथ दिया। अँगरेजो ने अरबों को स्वाधीनता देने की प्रतिज्ञा की थी। अक्टूबर सन् १९१५ में मक्का शरीफ मे अमीर हुसैन ने अँगरेजी राजदूत सर हैनरी मेकमाहाने के साथ समझौते की वार्त्ता की और अरबों की स्वाधीनता की माँग प्रस्तुत की। वह अरब-देश, शाम(सीरिया)और मेसोपोटा-