मुकर्जी
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ग्रौर ब्रतानिया में युद्ध दछिड़ जाने की श्राशा होउठी । उस समय बरता-
निया के राजनीतिज्ञे ने मिस्न को सतुष्ट करना ही उचित सम्झा श्रौर १६३६।
मे, पूर्वोहक्त परस्पर सधि करली । गत धपष जमेन जनरल गेमल जकब लीव्रिया से
बढता-बढ़ता मिस के समीप तक ्रा गया था, तब जकाहिरा श्रादि पर ुरी वायु-
यानों ने बमवर्षा की थी । स्वेज बरतानिया के पूर्व-देशीय साम्राज्य की धमनी
है, उसकी रद्षा के लिये युद्र-काल में सिल को संतुष्ट रखना श्रावश्यक है ।
मिलत से निरक्तरता बहुत
की
है, साधारण जनता &०
फी० निरक्तर है। १९२३
के मिस्ती शासन-विधान के
ग्रनुसार यहाँ दो धारा-
सभाएँ हैं : मजलिसुश्श-
व्यूक (बडी) जिसके १५०
सदस्यों का, ५ साल के
लिये, सावंजनिक चुनाव
होता है। दूसरी मजलिसुल्-
नवाब ( छोटी ), जिसके
१०० सदस्यों मे से ६० को
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बारशाह नामज़द करता
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है, ४० का चुनाव होता
है, सरकार मजलिसुश्श-
य्यूक के प्रति ज़िम्मेदार है।
मुकरजी, डा० श्यासाप्रसाद्---श्राप श्र० भा०
कत्ता-प्रधान हैं । हिन्दू महासभा के नेताश्रों में ब्रापका महत्वपूरण र्थान है ।
विगत नवम्ब्र १६४१ में बंगाल-सरकार के प्रधान मत्री मियॉ फज़लुलहक़ ने
श्रापको श्रपने मत्रि-मणडल मे श्रर्थ-सचिव के पद पर नियुक्त किया । इससे
पूर्व श्राप कलकत्ता यूनिवर्सिंटी के वायस-चांसलर के पद पर भी कई वर्षों तक
र चुके हैं । श्राप प्रसिद्ध शिक्षा-विज्ञ तथा विद्वान् है । ग्रगस्त १६४२ में
( 'फ़ा नस)
हिन्दू महासभा के कारय-
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लाल सू7भर'
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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२८२
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