घोषणा करदी। उसे यह विश्वास था कि जर्मनी अवश्य विजयी होगा और वह लूट मे से हिस्सा लेना चाहता था, परन्तु, इसके बाद, पासा पलटता गया। अक्टूबर १६४० में मुसोलिनी ने यूनान पर हमला किया, किन्तु इस युद्ध मे युनानियों ने उसके दाॅत खट्टे कर दिये। इटालियनों की पराजय ही नही हुई, अपितु उन्हे अपने अपह्त देश, अलबानिया, से भी हाथ धोने पडे। जून ९६४० मे मुसोलिनी का इटली, सोवितयत रुस के विरुद युद्ध मे, जर्मनी के साथ, शामिल हुआ और दिसम्बर १६४१ में सयुक्त-रा अमरीका के विरुद्ध। इतिहास मे, बाहुत दिन, सबसे प्रथम मुसोलिनी संसार के समश्र "हौआ" बनकर प्रकट हुआ, जिसके वीभत्स रूप के सामने संसार के महान बरतानवी साम्राज्य के प्रधान-मन्त्री मृत चेम्बरलेन को भी ढीला पड जाना पडा, और उन्की ढील ने ही मुसोलिनी को इतना बल प्रदान किया। पर ऋधिनायक मुसोलिनी की कला अब भंग हो चुकी है। पुरातन रोमन-साम्राज्य के उसके सुख-स्वप्र हवा मे उड चुके है। उसक अफ्रीकी साम्राज्य(अवी-सीनिया के अमानुपिक अपहरण के बाद इटली के बुढे बादशाह, विकटर इमान्युल, को 'सम्राट' घोषित कर उसने बडा गर्व किया था) अब धूल मे मिल चुका है। भारतीय सेनाओ की वरतानवी सेना-नायको की रण-चतुरी ने अवीसीनिया को फिर से स्वतन्त्र कर दिया है। इटली के अफ्रीकी-साम्राज्य के दुसरे अग भी मुसोलिनी और उसक इटली कुछ लाभग्रढ सिद्ध नही हुए। बल्कि सच्चाई तो यह है कि मुसोलिनी हिटलर के लिये एक लोथ के सम्मान है, जिस हिटलर अपनी पीठ पर लादे-लादे व्यर्थ ही घूमता है। मुसोलिनी इटली का प्रधान-मन्त्री तो है ही-जिस पद को सरकार का मुख्याधिकरी कहता है। इसके अलावा वह इटली का स्वदेश-मन्त्री, युद्ध-मंत्री(थल,जल॰ नभ सब सेना का) था इटलियन पूर्वीय-अफरीका का भी मन्त्री है। दोना राचीली उसकी पिढी है, और इन दोनो से नामक दो पुत्र और नामक एक पुत्री है।९६३६ में भारत भी थी और महात्मा गान्धी से उसने भेट की थी।
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