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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२९०

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मुसोलिनी
 

मुसोलिनी ने समस्त राष्ट्र को अपने ‘जिसकी लाठी उसकी भेस' मत की दीक्षा दी है। यही उसका फासिस्त दल है । इटली में फासिस्त दल ही अकेला राजनीतिक दल है। उसके प्रत्येक सदस्य को मुसोलिनी की हर प्रकार से प्राजा माननी पड़ती है । फासिस्त काली कुर्सी पहनते हैं तथा हाथ ऊँचा उठाकर, रोमन प्रकार से, परस्पर नमस्कार करते हैं। उनकी विचारधारा तथा संगठन सैनिक है । उनके विधान में लिखा है कि फ़ासिस्त दल नागरिको की एक सैन्य है जो मुसोलिनी की आज्ञा पर राष्ट्र-सेवा के लिये तत्पर रहती है । इसका महदुद्देश्य स सा में अतालवी (इटालियन) राष्ट्र की महत्ता स्थापित करना है । फासिज्म हिंसा को मानता है, नागरिक स्वाधीनता को अस्वीकार करता है और सम्पूर्ण-सत्तावादी है । युवकों के संगठन और उनकी शिक्षा पर भी उसका नियत्रण है । ६ से १२ वर्ष की आयुवाले बच्चो के सङ्गठन का नाम ‘बलिल्ला' है; १२ से १८ की उम्रवाल की सस्था ‘अवंगार्दिया' कहलाती है । इन संस्थाओं के सदस्यों की अपनी बर्दियाँ हैं और इनके सदस्यों को फौजी तालीम लेनी पड़ती है । १८ वर्ष के जवान युवको को फासिस्त दल में भर्ती किया जाता है । सन् १९२७ मे इस दल के दस लाख सदस्य थे । फासिस्त दल साम्राज्यवादी और राष्ट्रवादी है । वह पुरातन रोमन साम्राज्य की परम्परा को पुनर्जीवित करने का इच्छुक है और राष्ट्र को सिपाहियाना बनाकर अनुशासन और व्यवस्था तथा श्रमशीलता की शिक्षा देता है । इस दल की सर्वोच्च संस्था फासिस्त ग्राड कौसिल है, जिसकी नियुक्ति मुसोलिनीं करता है। इस कौसिल को मुसोलिनी का उत्तराधिकारी नियुक्त करने का अधिकार है । फासिस्त दल का रोमन कैथलिक ईसाई-सम्प्रदाय से अच्छा सबध है । सन् १९३८ तक मुसोलिनी यहूदियो का विरोधी नही था । वह दल में शामिल थे और उच्च पदो पर थे। परन्तु नात्सी प्रभाव मे आकर वह यहूदियो का विरोधी होगया ।