मैंजिनो दुर्ग-र्पक्ति २८१
वादी सरकार की सहायता के लिये मैंक्तिक्रो ने अस्त्र-शस्त्र भेजकर उसकी सहायता की । मैक्सिकों ने रूसी क्रान्तिकारी टूररुरुकी को अपने देश मे शरण दी । नवम्बर '४० मे कार्डेनाज़ की अवधि समाप्त होगई, तब उसकी सिफा- रिश से, अवीला कमाचो, राष्ट्रपति बनाया गया । संयुक्तराष्ट्र अमरीका से,तेल के झगडे के समय, मैक्सिकों के बिगडे हुए सबघ अब सुघर चले हैं ओंर मैक्सिकों ने अमरीकी गोलार्द्ध की रक्षा के लिये तत्परता दिखाई है । अक्टू- बर १९४१ मे बरतानिया से भी सवघ फिर जुड गया है । दिसम्बर '४१ मे जब जापान ने अमरीकी अधिकृत देशो पर आक्रमण किया तो मैक्सिकों ने उससे नाता तोड़ लिया ।मैंजिनों दुर्ग-पंक्ति-यह फान्स की पूर्वी सीमा पर क्रिलेबन्दी थी, जो सत् १९२७-३५ मे फान्स के युद्वन्सचिव, मैंजिनो की योंजनाक्वे नुसार, उसीके तन्टवावघान मे, बनी । यह ससार की सबसे मज़बूत तथा विशाल किलेबंदी थी । इस दुर्ग-पक्ति मे भृहुदृर्म-स्थित्त (दृन्नमीदोड्रा) पचासों क्रई-म्नजिला किले थे । ज़मीन के ही भीतर अनेक नगर वसे हुए थे, जिनमेरेलवे, बाजार. बिजलीघर, सडक आदि की पूरी व्यवस्था थी । मैंजिनो किले नंदी स्विटूड्डारतैण्ड के सीमान्त से उत्तर मे मलमेदी तक फैली हुई थी I इस दुर्गन्थक्ति की म्नलमेदी से आगे, बेलजियम सरहद के किनारे-किनारे, समुद्र तक थोडे हलके रूप मे बढाया गया था । मई १९४० मे इसीकों तोडन्मचेदृ कर नात्सी सेनाएँ फान्त मे घुस पडी । तून १९४० मे नाल्सियो ने राइन नदीको पार किया ओर बडो मैंजिनों लाइन का भी सत्यानाश कर डाला । इसका मुख्य-द्वार, पृथ्वी के ऊपर की ओर, कुआँ जैसा था । उसपर तोपें चढी रहती थी, जिनका बिजली द्वारा अन्दर किले मे एक कमरे से सग्यन्ध रहता या, और एक व्यक्ति वहीं भीतर बैठा हुआ बिजली की ताकृत सेगोले फेंका करता था । फान्स को अपनी इस किंलेवन्दी पर भारी गर्व था, ओर इसीके भरोसेवह लोग निहिचन्त बैठे रहे ओर नात्यियों से जान तोडक्रदृ न हादृ मके वरतानी मोटर-सवार सेना का जनरल फुलर तो दुर्ग-यंहिदृ को सत् १९२७ में ही "फान्त की कृब्र का पत्थर" कह चुका था, और उसकी भविष्य. द्राणी टोक निकली ।