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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२९९

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मोसले युद्ध में फ्रांस में लडा; १९१८ में पार्लमेन्ट का सदस्य चुना गया, १६२४ तक दकियानूसी और स्वतंत्र दलो का सदस्य रहा। सन् १९२४ मे मज़दूर-दल मे शामिल हुआ; १९२९-१९३० मे, मैकडानल्ड-सरकार मे, डची अफ् लेकेस्टर का चांसलर रहा; १९.३१ मे मज़दूर-दल को त्याग दिया। इसके बाद ब्रिटिश यूनियन आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन का आधार शासन में नेतृत्व का सिद्वान्त है । वह पार्लमेंटरी प्रजातत्र-प्रणाली के विरुद्ध है । वह सम्राट के प्रति राजभक्त तो है, किन्तु पार्लमेट मे एक दल चाहता है । वह विरोधी-दल की आवश्यकता नही समझता । वह लार्ड सभा को मिटाकर उसके स्थान पर कारपोरेशन की राष्ट्रीय परिषद् के प्रतिनिधियो का दूसरा चेम्बर बनाना चाहता है । उसके अनुसार व्यावसायिक मामलो मे भापण की स्वाधीनता रहेगी। समाचार-पत्रो मे ‘ग़लत समाचार प्रकाशित करने पर दण्ड दिया जायगा । आर्थिक क्षेत्र में वह न समाजवाद को पसंद करता है और न पूजीवाद को । वह विदेशो को ऋण देने का विरोधी है तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में कमी करने के पक्ष में है, जिससे ब्रिटेन तथा ब्रिटिश साम्राज्य की उन्नति हो। यहूदियो को ‘विदेशी’ घोषित कर देना चाहता है, तथा जो उनकी समस्या को प्रमुख स्थान देते है या उनका पक्ष लेते है, उन्हे ब्रिटेन मे न रहने देने का हामी है । ब्रिटिश यूनियन आन्दोलन की वैदेशिक नीति हिटलर तथा नात्सीवाद की प्रशंसक है। वह चाहती है कि पूर्वीय योरप में ब्रिटेन हस्तक्षेप न करे । चाहता है कि हिटलर को जर्मनी के पहले उपनिवेश वापस दे दिये जायें । वह इस युद्ध के विरुद्ध है तथा हिटलर के साथ संधि कर लेने के पक्ष में है। सर ओसवाल्ड का कथन है कि जर्मनी विश्व-राज्य की स्थापना करके स्वय ससार-विजेता बनना नहीं चाहता, और न वह ब्रिटेन के विरुद्ध ही है। यह सब यहूदियों का प्रचार है, जिनके हित के लिये और उन्हीकी आर्थिक-सहायता से, यह युद्ध शुरू हुआ है । इस आन्दोलन का संगठन नात्सी ( विशेषतः फासिस्त दल ) की तरह किया गया है । इसके सदस्य काली कमीज़े पहनते हैं तथा नात्सी-फ़ासिस्त ढग से, ऊँचा हाथ उठाकर, अभिवादन करते और नाल्सियों के होस्ट वैज़ल क़ौमी गीत का अँगरेज़ी अनुवाद गाते हैं । पार्लमेन्ट मे इस दल का कोई प्रतिनिधि नहीं हैं । मई १६४०