पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३०४

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२६६ युद्ध-विरोधी आन्दोलन होगई । यहूदी काग्रेस के १२॥ लाख सदस्य हैं। डा० वीज़मन इसका अध्यक्ष है । रूसी क्रान्ति के बाद वहाँ के यहूदी, अपने वर्तमान सामाजिक जीवन से सन्तुष्ट हैं । यरूशलमवादी उनसे असन्तुष्ट हैं और इसे अपनी शक्ति का हास समझते हैं। किन्तु यरूशलमवादियों को अमरीका के यहूदियों से बहुत साहाय्य मिला है और गैर-यरूशलमवादी यहूदियों से भी इन्हें भारी सहानुभूति प्राप्त हुई है । जियोनिस्ट या यरूशलमवादी यहूदियों में, मामाजिक और राजनीतिक विचार-दृष्टि से, कई दल हैं । उग्र जियोनिस्टों का एक दल अलग ही है जो फिलस्तीन में जरदान नदी के दोनों किनारों की भूमि पर यहूदी राज्य की स्थापना की घोषणा के लिये आतुर है ।। | यहूदियों के सभी दल फिलस्तीन के अरबों के विरोध को समझौते और प्रार्थना से ठडा करने के पक्ष में हैं, और चाहते हैं कि फिलस्तीन में प्रभुत्व तो यहूदियों का रहे और यहूदी राज्य में अरब लोग एक अल्पसंख्यक जाति की भॉति, बने रहे। यहूदी एजेसी--इस सस्था की स्थापना राष्ट्रसघ के शासनादेश के अनुसार हुई है। यह सस्था फिलस्तीन मे यहूदियो का राष्ट्रीय उपनिवेश बसाने के सम्बन्ध में होनेवाले आन्दोलन मे यहूदी पक्ष का प्रतिनिधित्व करती है । इस सस्था मे यरूशलमवादी तथा गैर-यरूशलमवादी दोनों प्रकार के आधेआधे सदस्य हैं । डा० चैम वीजमन इसको अध्यक्ष है । युद्ध-पोत-बहुमूल्य और बडा जगी-जलयान (Battle Ship) । इस पर अनेक बड़ी-बडी तोपे चढी रहती हैं। इसका उपयोग नाविक-युद्ध में किया जाता है । बहु-व्यय-साध्य होने के कारण बडे-से-बडे राज्य के पास पॉच-छ। युद्ध-पोत होते हैं । किसी-किसी के पास आठ-दस तक हैं। नाविक-सेना अमरीका तथा ब्रिटेन की सर्वोत्तम है। दिसम्बर १९४१ मे, प्रशान्त महासागर मे युद्ध छेडते समय, जापान ने ब्रिटेन के ऐसे ही दो सर्वोत्तम युद्धपोतो ‘प्रिन्स आफू वेल्स’ और ‘रिपल्स' को डुबो दिया था । युद्ध-विरोधी आन्दोलन–महात्मा गांधी ने अक्टूबर १९४० मे, युद्ध मे सहयोग देने के विरोध में, भारत में यह आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस