पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३१४

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३०८ राइखताग-अग्नि-काण्ड AAS किन्तु सन् १९१६ के जलियाँवाला हत्याकाण्ड के विरोध में आपने उसे त्याग दिया। विश्वकवि ने अमरीका की यात्रा की और वहाँ येल यूनिवर्सिटी में 'राष्ट्रीयता' विषय पर व्याख्यान दिये । इसमें आपने चीन के प्रति जापान की अमानुपिक नीति और उसके साम्राज्यवाद की तीन अालोचना की।। सन् १९२१ तथा १६२२ मे विश्व-कवि ने भारत-भ्रमण करके जनता को स्वाधीनता का सदेश दिया । सन् १६२४ मे यापने चीन और जापान की यात्रा की । सन् १९२५ मे आप इटली गये। वहाँ मुसोलिनी ने आपका स्वागत किया । इस प्रकार उनके जीवन का शेष काल विदेशो में भ्रमण, साहित्य-रचना तथा शान्ति-निकेतन के लिये धन-संग्रह में व्यतीत हुया । सन् १६३० मे आपने चित्र-कला का अभ्यास किया । सन् १९३० में आपने विला- यत के आक्सफर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान (Hibbert Lectures) दिये । जर्मनी गए और वहाँ भी व्याख्यान दिए । वहाँ से आप रूस गए और तदनन्तर रूस से अमरीका । सन् १९३१ मे आप भारत वापस आए । सन् १९३२ मे आपने ईरान की यात्रा की। सन् १६३४ से आप शान्ति-निकेतन मे ही ... रहे । आक्सफर्ड यूनिवर्सिटी ने आपको डाक्टर (प्राचार्य) की पदवी ( भारत मे) प्रदान की। आप पहले व्यक्ति थे जिनको उनके स्थान पर किसी महान् सस्था के प्रतिनिधियो ने आकर पदवी प्रदान की हो। ७ अगस्त १६४१ को . आपका स्वर्गवास होगया । राइखताग-जर्मन पार्लमेट । राइखताग अग्नि-काण्ड-२७ फरवरी १६३३ को राइख़ताग के भवन • भयंकर अग्नि-काण्ड हुआ। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जमनी मे ..

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