राजेन्द्रप्रसाद मैट्रिक, बी० ए० और एम० ए० की परीक्षाओ मे आप समस्त विद्यार्थि-समुदाय में सर्वोच्च अाये । १६०६ मे बी० ए० और '०७ मे एम० ए० पास करने के बाद राजेन्द्र बाबू मुज़फ्फरपुर कालिज मे अँगरेज़ी के अव्यापक हुए और दूसरे, वर्षे कलकत्ता सिटी कालिज मे अर्थशास्त्र के अध्यापक । १६१५ मे उन्होने कानून की एलएल० एम० परीक्षा सर्वोच्च कोटि मे उत्तीर्ण की। इसके बाद कानून के अध्यापक बनाये गये । १६१६ मे, पटना मे हाईकोर्ट की स्थापना होने पर, राजेन्द्र बाबू ने पटना मे वकालत शुरू की जो, आपकी प्रतिभा के कारण, शीघ्र ही चमक निकली । श्राप जन्मजात देशभक्त और समाजसेवी हैं । आपकी प्रतिभा से प्रभावित होकर स्वर्गीय गोखले ने आपको भारत- सेवक समिति में सम्मिलित होने के लिये बुलाया, किन्तु आपके द्वारा तो देश की और भी अधिक सेवा होनी थी। १६१७ मे जब महात्मा गान्धी, चम्पारन के किसानो के उद्धार के लिये, पहुँचे तो राजेन्द्र बाबू ने महात्माजी का बहुत हाथ बॅटाया । १६२१ के असहयोग मे आपने वकालत छोडदी । सबसे प्रथम १६०६ की काग्रेस मे आप सम्मिलित हुए और १६१६ से तो आप उसका एक अग हैं । १६२२ मे कांग्रेस के प्रधान मन्त्री बनाये गये और १६२३ मे हिन्दी- साहित्य-सम्मेलन के अध्यक्ष । सन् १६२१, १६३१ और १६३२ के अान्दोलनों मे भाग लिया और अनेक बार जेल गये। १६३० मे, एक मुकदमे के सिलसिले मे, आपको विलायत जाना पडा । वहाँ से आप योरप की अन्य राजधानियो मे भी गये और उन्होने भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध-विरोधी सम्मेलन में भाग लिया। वहाँ आपका मार्के का भाषण हुआ। प्रास्ट्रिया मे एक फासिस्त ने आप पर घातक आक्रमण किया, किन्तु ईश्वर ने आपकी रक्षा की । सन् १९३४ मे, भूकम्प-पीडित बिहार की आपने भारी सेवा की । सन् १६३४ मे काग्रेस के बम्बई अधिवेशन के सभापति बनाये गये । आप पहले प्रेसिडेन्ट थे जिन्होने, अपने पद के कारण देश, का दौरा किया। कांग्रेस पाले- मेटरी कमिटी के भी आप सदस्य रहे । मई १६३६ मे सुभाष बाबू के त्यागपत्र दे देने पर राजेन्द्र बाबू शेष काल मे राष्ट्रपति रहे । राजेन्द्र बाबू बिहार के गान्धी हैं । अपने प्रान्त मे उन्होंने राजनीतिक, साहित्यिक, शिक्षा और खादी प्रसार तथा अन्य समाजसेवी क्षेत्रों मे चहुंमुखी विकास किया है । निरन्तर देश-
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