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राषट-संॱघ ३१३

सम्स्त राषंटो कि एक सभा स्थापित कीजाये। किन्तु संयुत्त-राज्य अमरीका की कांग्रेस ने वसीई की सधि को स्वीकार् नही किया और न उसने राषट संघ कि सद्स्यता ही स्वीकार कि।

   राषट-संघ केअन्तर्ग्त दो समाये थी-असेम्बली तथा कौसिल। प्रत्त्येक स्वाधीन देश को इस्मे अपने सदस्य भेजने का अधिकार था। असेम्बली मे राषटसंघ के सभी सदस्यों के प्रतिनिधि होते थे और प्रत्त्येक सदस्य-राष्ट की एक वोट थी। ५४ राष्टों के  प्रतिनिधि असेम्बली मे थे। कौसिल एक प्र्कार की कार्यकारिगी सभा थी। इसमे १५ सदस्य थे। बरतानिया,फ्रान्स और रूस कोसिल के स्थाथी सदस्य थे,शोष चुने जाते थे। असेम्बली का अधिवेशन प्रतिवष॔ सितम्बर मे जिनेवा मे होता था और कौसिल के साम मे तीन अधिवेशन होने तथ किये गये थे। राषटसंघ का एक स्थाथी प्रधान कार्यालय भी जिनेवा मे था, जिसमे सरकार के प्रत्थेक सदस्य-राष्ट  के कर्मचारी तथाव अफ्सर थे। राष्टसंघ के अन्त्ग्र्त अन्तरांषटीय श्रमिक सघ तथ स्यथी विश्व न्यायालय की भी व्यव्तथा थी। इस्के विधान के अनुसार कोइ भी सद्र्य राष्ट,अन्य राष्टर के साथ विदम परिस्थिति उत्पनु होने पर, बिना संग के समष ग्रपन माम्ला पेश  किये,युद नही छॆड सक्ता था। यदि मंघ ओर महीने की भीतर निगर्च न कर पावे तो उस्के भी तीन महीने बाद वह राष्ट युद-रत हो सक्ता था।
   अमरीका के सम्मिलित न होने,दीले-दाले सगठन ओर स्वयं अप्नी शासक-शक्ति के अभाव के कारए संघ का कार्य आरम्म से ही ठीक तौर पर नही चल सका। इस्के सदस्य राष्टसंग के नाम पर अपने राज्य या साम्राज्य का कुछ भी त्याग करने से पीछे रहे। विगत युद्द मे पैदा हूई विजित ओर विजेताओ के बीच की खाई को सध पाट न सका। १६२५ मे जब जर्मनी राष्टसंघ मे स्म्मिलित हुआ तो कुछ अच्छे लश्ये दिखाई पडे ,किन्तु हिटलर के उदय पर १६३३ मे,वह संघ को छोड गया। जर्मन राष्त्र-संघ को सदेव मित्र-राष्टो का एक गुट कहते रहे।
   सन १६३२ मे जापान ने चीन के मचुरिया प्रान्त का अपहरे कर लिया,किन्तु चीन के घपील करने पर ओर राष्टत्र-संघ द्वारा जापान को आक्रमक घोपित किये जाने पर भी, उस्के विरुद कोई काररवाई नही कि गयि ओर जापान मंध्