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३१४ राश्त्रस्ंघ-यूनियन

को छोड बैठा। १६३४ मे सोवियत रुस के राष्ट-स्ंघ मे आजाने पर जर्मनी ओर जापान के निकल जाने कि श्रति-पूर्ति होजाने पर सन्तोप किया गया ,किन्तु सन १६३५ मे इटली ने अबीसिनिय पर आक्रम्ण कर दिया। आरम्भ मे अबीसिनिय की कोई सहायता नही कीगैई। अन्त मे जब अबीसिनिय पर इटली का परा आधिपत्य कायम होगया, तब, इटली के विरुद्द केवल आर्थिक दएडाशाये जारी कीगई ओर बाद मे वह भी रोक दीगई,ओर इटली भी सघ से पृथक होगया। इससे तो राश्त्र-सघ की रही -सही प्रतिष्ठा भी भग होगया, रश्त्रो का उस पर से विश्वास उठ गया ओर वह पुन्ः पारत्परिक समभोते ओर गुटब्न्दियौं के पुराने सिद्दान्त के अनुयायी बन गये। सन १६३६ मे स्पेन के गृृृह-युद्द मे इटली तथा जर्मनी ने विद्रोहियो की मदद की,परन्तु राष्ठरस्घ कुछ भी न कर सका। सन १६३८ मे आसिटर्या तथा चैकोस्लोवाकिया की स्वधीनथा का जर्मनी ने अपहरण किया ओर राष्त्रस्घ ने चूॅ तक न की। इस प्रकार,सितम्बर १६३६ मे जर्मनी के पोलैराड पर आक्रमण करने पर राष्ठसघ मे इस पर विचार तक नही किया गया। अलबता सोवियत रुस ने जब पोलैराड पर हमला किया तो,११ दिसम्बर १६३६ को,सघ की असेम्बली की बैठक कीगई, रुस की निन्दा की गैई ओर उसे सघ से पृथक कर दिया गया।

    राष्त्रसघ का अब अन्त होचुका हे। जुलाई १६४० मे उसके कुछ दफ्तर भी जिनेवा से उठकर न्युयोर्क चले गये हे। राष्त्रस्घ की नियमावली मे २६ धाराएॅ थी।
    राष्रत्रसघ-युनियन_यह ब्रिटेन की एक सस्था है। सन १६१८ मे लीग ओफ नेशन्स सोसाइटी तथा लीग ओफ फ्री नेशन्स असोसियेशन को सम्मिलित कर इसकी स्थापना हुई। सन १६३६ मे ग्रेटब्रिटेन मे इसकी २,४०० शाखाये तथा २,००,०० इसकी सदस्य थे। इस सस्था का उद्धेश्य राष्त्रसघ की स्थापना के लिये जनता मे तत्स्म्बन्धी शिश्रा तथा सहानुभूति पैदा करना था ओर इसी के प्रयास से रश्त्रास्ग्घ की स्थापना हुई। सदभाबना,सहयोग ,तथा विविध देशो की जनता के साथ सद्व्य्वहार द्वारा पारस्परिक सामजस्य पैदा करना तथा राष्टसघ का समर्थन करना भी इस्का उदेश था। वर्तमान समय मे इसके दो सयुक्त अध्यक्स है-लार्ड सैसिल तथा डा॰ गिल्ब्र्ट मरे। बरतानी साम्राज्य देशो,फ्रान्स,अम्रीका तथा अन्य बीस देशो मे भी एेसी सस्थाये थी ओर्