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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३३२

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रूस की क्रान्ति मे थी । सरकारी कर्मचारियों में बेईमानी और रिश्वतख़ोरी का बाजार गर्म था । विगत युद्ध के प्रारम्भ के समय रूस की जनता में स्वदेशाभिमान तथा मातृभूमि के प्रति प्रेम का सागर उमड़ पड़ा । एक विशाल देशरक्षिणी स्वय-सेवक सेना तो बन गई, किन्तु न तो उसके लिए सरकार के पास कार्यकुशल अफसर थे और न यथेष्ट मात्रा में शस्त्रास्त्र ही 1 सितम्बर १९१४ में पूर्वीय प्रशा में रूसी सेनाओं की उपस्थिति के कारण, जर्मनी में आतंक छागया और पेरिस पर हमला करने की उसकी आकाक्षा पर पानी फिर गया । सहस्रों की संख्या में रूसियो के बलिदान ने उस समय फ्रान्स की रक्षा की । रूसी सेनाओं के पास न तो अच्छे अफसर थे और न पर्याप्त युद्धास्त्र और युद्ध-सामग्री ही, इसलिए सैनिकों में जारशाही के प्रति विद्रोह की भावना उत्पन्न होगई । सन् १९.१५ के अन्त में रूस पश्चिमी मित्रराष्ट्रों के लिए चिन्ता का प्रसग बन गया । सन् १९१६ मे वह यात्मरक्षा के लिए ही युद्ध करता रहा । उस समय यह किम्बदन्तियाँ भी सुनी गई कि रूस जर्मनी के साथ अलग सन्धि करेगा । २६ दिसम्बर १६१६ को रासपुटिन की पीत्रोग्राद में हत्या कर दी गई । जारशाही को फिर से शक्तिशाली बनाने का एक बार प्रयत्न किया गया । मार्च १९१७ तक घटना-चक्र में तीव्र गति से प्रगति हुई ।। पीत्रोग्राद मे अन्न का अभाव होजाने से जनता में उपद्रव तथा बलवे होने लगे। इन उपद्रवों ने क्रान्तिकारी विद्रोह का रूप धारण कर लिया । रूस की धारा-सभा–ड्य मा—का दमन किया गया । उदार नेताशों को गिरफ्तार किया गया । पिस लवोफ् के अधीन एक अस्थायी सरकार बनाई गई और १५ मार्च १९१७ को ज़ार ने राज-सिंहासन का त्याग कर दिया । उस समय ऐसा लगा कि शायद नये जार के अधीन एक नियंत्रित क्रान्ति संभव हो सकेगी । परन्तु शीघ्र ही यह स्पष्ट होगया कि रूस मे जनता को जारशाही से विश्वास उठ गया है, और दोनो मे सामजस्य सभव नही है । रूसी जनता जारशाही से मुक्ति पाने के लिए अत्यन्त विकल थी । मित्र-राष्ट्र रूस की वास्तविकता से परिचित न थे । रूसी प्रजातन्त्री सरकार ( Russian - Republican Government) का प्रमुख करेस्की था। उसे अपने देश में । । ९ का सामना करना पड़ा और बाहर मित्रराष्ट्रो की उदासीनता