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३३० बंका से असन्तोष प्रकट किया । दिल्ली में समझौते की बातचीत चली, किन्तु अधूरी रही । सितम्बर १९४१ मे कोलम्बो में फिर समझौता सम्मेलन हुआ । एक रिपोर्ट तय्यार हुई और दोनो योर के प्रतिनिधियों के उस पर हस्ताक्षर हुए । किन्तु प्रवासी भारतीयों को इस समझौते पर ग्राउत्ति रही । लका में उनका आवास अदालत द्वारा प्रमाणित किया जाना ज्या-का-त्या रहा; सरकारी नौकरियों में उन पर प्रतिबन्ध नहीं हटे, जिन भारतीयों ने लका में बस जाने का प्रमाण दे दिया हो उन्हें भी भूमिसुधार कानून के लाभ से वचित रहना, स्थायी निवासी होने का प्रमाणपत्र रखनेवालों के बच्चो की असन्तोषजनक स्थिति, एक वर्ष से अधिक अनुपस्थित रहने में कठिनाइयॉ, मताधिकार की अनुचित कठोरता तथा भविष्य में लका जाकर वसने के सम्बन्ध में लगायी गई लज्जाप्रद शते, आदि । नवम्बर १९४१ मे भारतीय व्यवस्थापिका सभा ने एक प्रस्ताव स्वीकार किया, उससे लका के भारतीयों को कुछ आश्वासन मिला। १ फरवरी १९४१ से बगीचों में काम करनेवाले स्त्री-पुरुप-बच्चों की मज़दूरी कुछ बढ़ गई है, किन्तु दूसरी ओर मालिकों ने लडाई को भत्ता बन्द कर दिया है। प्रसूति के समय स्त्री-मजदूरनियो को १॥ महीने की, कुछ निश्चित भत्ते सहित, छुट्टी की सुविधा कीगई है, मज़दूर सच्चों को यद्यपि स्वीकार किया गया है, किन्तु उन्हें पनपने नहीं दिया जाता ।। भारतीयों की स्थिति में कोई सन्तोषजनक परिवर्तन नही हुआ है । अप्रैल १९४२ मे जापान ने मद्रास . * ताण लका पर भी हमले किये थे, जिनका करारा उत्तर दिया गया था । भारत सरकार लकी को चावल भेजकर सहायता कर रही है । अगस्त ४२ मे सर बैरन कोलम्बो काडी, जयतिलक, इस सम्बन्ध में, भारत आये थे । भारत सरकार की ओर | हे न्द म हा सागर मगरा से लका मे एक ऐजेन्ट नियत है । । हिन्दुस्ता न (% | जन २० ८ जाना | | भैरग
- मनार की
लग्नार लाड़ी/अधरमन्निकोमानी नाल कुमारी अ० लो नन्द्राग्वे,