शंकरराव देव-कान्ति-कार्य-समिति के सदस्य महाराष्ट्र के प्रमुख काग्रेसी नेता; निर्धन माता-पिता के कुल में, पूना के निकट भोर रियासत के एक ग्राम् मे, सन् १८६५ मे, जन्म हुआ, पूना से हाईस्कूल परीक्षा पास की और बम्बई से बी०ए० । यह वकील बनना चाहते थे, किन्तु, रादृट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण, उन्हें कालेज त्याग देना पडा । लोक्रमान्य तिलक से श्री देव आरम्भ से ही प्रभावित थे । सन् १६१६-१७ के होमरुल् आन्दोलन में भाग लिया । चम्पारन-सत्याग्रह में गाधीजी के साथ रहे। मराठी 'लोकशक्ति' तथा 'लोकसग्रह' का सपादन किया । असहयोग तथा सत्याग्रह आन्दोलनों मे कई वार जेल गये ।
शक्ति-सन्तुलन -इसका यह अर्थ हैकि-
योरप मे एक दल के राज्यो की शक्ति दूसरे दल के राज्यों की शक्ति के बराबर रहे, अन्यथा एक दल के राज्यों का एकाधिपत्य स्थापित होका योरप की शान्ति के लिये खतरा बना रहेगा । ब्रिटिश वैदेशिक नीति की यह परम्परा रही है किं यह योरप में शक्ति…सन्तुलनकी रक्षा के लिये प्रयत्नशील रही है । सन् १८७१ से १६१४ तक योरप से जो शान्ति रही उसका कारण यह शक्ति सन्तुलन ही या एक छोर जर्मनी, इटली तथा आदिटुया का गुट था, दूसरी ओर ब्रिटेन,फ्रान्स, तथा रूस का मित्रदल् । शक्ति-सन्तुलन का उद्देश प्रारम्भ से ही योरप की शक्तियों भे समता बनाये रखने का रहा है, जिसने ग्रेट-बिटेन की स्थिति निरपेक्ष रही है।