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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३६५

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शरलागत

ताकि वह किसी भागदे के समय उसका नीपटारा कर सके । किन्तु जरम्नी की शक्ति बध्ने से व्रिटेन के लिये यह श्राव्श्यक होगया कि सन्तुलन को कायम रख्नने के लिये वह एक दल मे शामिल होजाय । सऩ १६१४-१८ के बाद जब योरप मे फ्रान्स की सत्ता श्रधिक बढी तोह ब्रिटेन ने योरप मे फ्रान्स की प्रधान्ता के भय मे जर्मनी के पुनरथन मे योग दिया श्रोर उसकी शक्ति को बढ्ने दिया, श्रोर उसकी शक्ति को बढ्ने दिया, श्रौर जब योरप म, हिट्लर के नेतुव मे , जर्मनी की सता श्रधिक बढ गैइ तो शक्ति को सन्तुलिन रखने के लिये ब्रिटेन ने नये सिर सोवियत रुस श्रौर फ्रान्स से सहयोगिता स्थापित करने का प्रय्त किया । जहा तक रुस से सम्बन्ध था ब्रिटेन को तब इसमे सफलता नही मिलि । जर्मनी ने श्रवसर से लाभ उठाकर श्रपने पुराने शत्रु रुस से मित्रता करली , योराप मे जर्मनी का प्राधान्य होगया श्रौर योरप मे वर्तमान युढ्ह छिडा । श्रासिट्रया-हगरि के साम्राज्य के कारया शक्ति-सन्तुलन की समस्या कठिन बनि । किन्तु श्रब ब्रितेन का मित्र नही है। शररागल -सन १६१४-१८ के युध के बाद श्रनेक दोशो ने राजनीतिक तथा जातीय भेदभावो के श्राधार पर श्रल्प्मतो का उत्पीडन शुरु किय । फलत: श्रत्याचारो दसे पीडित लोगो ने श्रपने देशो मे शररा ली । लडाई के बाद सबसे पहले शररागत रुसी, श्रार- मीनियन तथा यूनानी थे । जो तुकी से निकाल्रे गये । 'शवेत' रुसी ३० लाख की स्ख्या मे थे । इनमे से बहुत से पोलेयेड, फ्रान्स , चीन मे बस गये, शेषससार के श्रन्य भागो मे श्रोर ३ लाख श्रारमीनियन निकट पवीय देशो मे । राश्ट्र्स्म्घ की सहा-यता से, युनान मे बस गये । जिनेवा सिथ्त नानसेन-कार्यालय शररागतोन (विशेष्त: रुसियो) की व्यवस्था कर्न था ।

     शररागतो की समस्या दूसरी बार १६३३ मे, नात्सीवाद के उद़भव के समय,उठी । जातीय श्रौर राज्नीतिक काररौ से ३॥ लाख नागरीक जम्र्नी