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३६२। शान्तिवाद पोन्सनवी, बरट्रेन्ड रसल, स्टार्म-जेम्सन और ऐल्डस हक्सले । सन् १९३७ मे यह सस्था ‘नो मोर वार मूवमेन्ट' में शामिल होगई। यह सस्था ‘युद्ध-प्रतिरोधी अन्तर्राष्ट्रीय सघ' की ब्रिटिश शाखा है। इसकी अोर से ‘पीस न्यूज़' नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित होती है । इसके १,२०,००० सदस्य है। इसके सदस्य सेना में भर्ती नहीं होते। यूनियन युद्ध का प्रत्येक रूप में विरोध करती है, चाहे वह रक्षात्मक हो, अथवा दण्डाना लागू करने के लिये हो अथवा सामूहिक सुरक्षा के लिये छेडा गया हो। यह संस्था जनता की आध्यात्मिक तथा नैतिक भावना से अपील करती है और अहिसात्मक प्रतिरोध का समर्थन करती है। अन्तर्राष्ट्रीय नीति में यह ऐसी स्थिति पैदा करना चाहती हैं जिससे युद्ध असभव होजाय। विश्वव्यापी शान्ति-परिषद् की स्थापना, राष्ट्रसंघ में सुधार, जिसमें उस दण्डाना लगाने का अधिकार न रहे, शासनादेश प्रणाली का विकास, सत्ताधारियों द्वारा अभाव-पीडितों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करना भी इसके उद्देश्य हैं । यह सस्था वर्तमान युद्ध के विरुद्ध है । २२ फरवरी १९४० को ब्रिटिश होम सेक्रेटरी सर जान ऐन्डरसन ने पार्लमेट में कहा कि अधिकारी इस संस्था की कार्यवाहियो का कडाई से निरीक्षण कर रहे हैं। शान्तिवाद-युद्व के उन्मूलन या परित्याग को आन्दोलन । ब्रिटेन, फ्रास, जर्मनी, अमरीका तथा अन्य देशो मे, इन दो विश्वव्यापी युद्धो के पूर्व से ही, शान्तिवादी संस्थाये आन्दोलन कर रही हैं । इस सम्बन्ध में कई बार अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति-परिघदे भी ग्रामत्रित कीगई। ईसाइयो के क्वेकर’ फिरके ने शान्ति-प्रसार आन्दोलन में बहुत काम किया है । इसी आन्दोलन के फलस्वरूप १६ १४ के युद्ध से पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति-परिषद् हुई । युद्ध के बाद भी प्रयत्न हुए, जैसे राष्ट्र-सघ के विधान की रचना, अन्तर्राष्ट्रीय विश्व-न्यायालय की स्थापना, कैलाग समझौता तथा निःशस्त्रीकरण परिषद् । १६३६ मे, राष्ट्रसघ के सहयोग से, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति-स्थापना के उद्देश से, ब्रुसेल्स (बेलजियम) मे शान्ति-परिषद् हुई, जिसमें भारत के नेता राजेन्द्र बाबू ने भी भाग लिया । शान्तिवाद की अनेक धाराये है, सबसे अधिक उत्साही दल युद्ध-प्रतिरोधियो का है, जिन्होने, १६२८ ई० मे, अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध-प्रतिरोधी संघ की स्थापना की । इगलैंड और अमरीका में इस आन्दोलन का बहुत ज़ोर है । कितु यह