अनुयायियों द्वारा दी गई उपाधि। जन्म २५ अगस्त सन् १८८८ को अमृतसर में हुआ। इनके पिता ख़ाँ अतामुहम्मद ख़ाँ कट्टर मुसलमान थे और इनकी देखरेख में इनायतुल्ला ख़ाँ बाल्यकाल से पूर्णतया इसलामी रँग में रँग गये। १९ वर्ष की आयु मे एम॰ ए॰ में सर्वप्रथम उत्तीर्ण हुए। पश्चात् कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये और वहाँ से सनद हासिल की। इँगलैण्ड से वापस आने पर इस्लामिया कालिज, पेशावर, के उप-प्रधानाध्यापक तथा बाद मे प्रधानाध्यापक बने। सन् १९१७ में भारत-सरकार ने इन्हें शिक्षा-विभाग का उप-मंत्री (Under Secretary) नियुक्त किया। सन् १९१९ में आप आई॰ ई॰ एस॰ से युक्त होकर पेशावर गये। इन दिनो आपने सब सरकारी स्कूलों में क़ुरान का अध्ययन अनिवार्य कर दिया, यद्यपि सरकार ने उनके इस कार्य का विरोध किया।
सन् १९३० में लाहोर के निकट इछरा गाँव में इन्होने ख़ाकसार दल की नींव डाली। किन्तु २ वर्ष मे केवल ९० व्यक्ति इसमें भर्ती हुए। इसके बाद जब लाहोर मे इसका काम शुरू हुआ तो क़रीब ३०० नवयुवक इसमे शामिल हो गये। २-३ वर्षों में यह आन्दोलन पंजाब, पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त, हैदराबाद और सिन्ध में फैल गया। तब इनायतुल्ला साहब ने 'अलइसलाह' नामक उर्दू-पत्र निकाला। सन् १९३५ के अन्त मे देहली मे इन्होने एक कैम्प खोला, जहाँ करीब ३०० जगहों से ख़ाकसार शामिल हुए। सन् १९३७ में जब कांग्रेस-मंत्रि-मण्डल स्थापित हुए और कांग्रेसी प्रान्तों में हिन्दू-मुसलिम उपद्रव होने लगे, तथा लखनऊ मे तबर्रा और मदहेसहाबा का आन्दोलन शुरू हुआ और संयुक्त-प्रदेश तथा उसके बाहर फैला, तब ख़ाकसारो ने संयुक्त-प्रान्त में सरकार के विरुद्ध ज़ोरो से आन्दोलन शुरू किया। जब अल्लामा की काररवाइयाँ प्रान्त की शान्ति के लिए ख़तरनाक रूप धारण करने लगी, तब १ सितम्बर १९३९ को, संयुक्त-प्रान्त की सरकार की आज्ञा से, लखनऊ में उन्हें गिरफ्तार किया गया। २ सितम्बर १९३९ को अल्लामा मशरिक़ी ने जेल मे ख़ानबहादुर हाफिज़ वाजिदहुसैन रिज़वी, कर्नल जाफरी तथा अन्य अफसरों के सामने एक इक़रारनामा इस आशय का लिखा कि "दफ़ा १०७ का नोटिस वापस हो जाने की तारीख़ से साल