पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३७३

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शुक्ल, शासनादेश-प्रणाली--पिछले युद्ध के बाद, वर्साई की संधि की धाराओ के अनुसार, जर्मन तथा तुर्की उपनिवेशो के शासन-प्रबन्ध के लिये, यह एक नवीन प्रणाली (Mandate) स्थापित कीगई। इसके द्वारा इन दोनों देशों के उपनिवेश और शासित देश राष्ट्र-सघ के अधीन होगये और इनका शासन-भार कुछ मित्रराष्ट्रो, विशेषतः ब्रिटेन और फ्रान्स को, सोप दिया गया । यह शासनादेश प्रणाली तीन प्रकार की है ।। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमिटी—यह सस्था अमृतसर मे १५ नवम्बर १९२० को स्थापित कीगई । इस संस्था का उद्देश्य यह है कि सिख पथ के गुरुद्वारो का समुचित प्रबन्ध सिखो द्वारा ही हो, सरकार द्वारा नही । श्रीनिवास शास्त्री–महामाननीय बी० एस०; पी० सी०:भारतीय लिबरले दल के प्रसिद्ध नेता ; जन्म १८६६. ई० ; शिक्षा प्राप्त करने के बाद ट्रिपलीकेन हाईस्कूल के हैडमास्टर होगये । सन् १९०६ में इस पद से त्यागपत्र देदिया । सन् १९१५-२७ तक स्वर्गीय गोखले के बाद पूना में भारत-सेवक-समिति के अध्यक्ष रहे । सन् १९१३-१६ तक मदरास व्यवस्थापिका सभा के सदस्य रहे । सन् १९१६-२० तक दिल्ली में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौसिल के मेम्बर रहे। सन् १९२१ मे साम्राज्य शान्ति-सम्मेलन में भाग लेने गये । राष्ट्र-संघ तथा वाशिंगटन सम्मेलन के अधिवेशन में भारत के प्रतिनिधि बना कर भेजे गये । सन् १९२१ मे प्रिवी-कौसिलर ( पी० सी० ) की पदवी मिली । १६२२ में उपनिवेशो में भारत के प्रतिनिधि की हैसियत से दौरा किया । १९२१-२४ में राज्य-परिषद् के सदस्य रहे । १६२३ मे केनिया सभ्य-मण्डल के सदस्य बने । सन् १९२६-२७ में दक्षिण अफ्रीकी भारतीय सभ्य मण्डल के सदस्य थे। १९३७ से १४१ तक मदरास की लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य रहे । शुक्ल, पंडित रविशंकर-मध्यप्रान्तीय कांग्रेस-सरकार के भूतपूर्व प्रधानमंत्री । सन् १९३८ के मध्य मे, जब डी० बी० एन० खरे को, उनके विरुद्ध कांग्रेस पार्लमेटरी बोर्ड द्वारा लगाये गयेअनुशासन के फलस्वरूप, प्रधानमंत्रिपद से त्याग-पत्र देना पडा, तब प० रविशंकर शुक्ल ने मंत्रि-मण्डल बनाया। डा० खरे के मत्रि-मण्डल में आप शिक्षा-मंत्री थे। आपने अपने प्रधान-मत्रि-काल मे ‘विद्या-मन्दिर' की योजना तैयार कराई और उसके