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अल्लामा मशरिक़ी
 

भर तक न तो मैं यू॰ पी॰ में दाख़िल होऊँगा और न ख़ाकसारी जत्थों को यू॰ पी॰ में दाख़िल होने की आज्ञा दूँगा।" इसी प्रकार का इकरारनामा दूसरे ख़ाकसार क़ैदियों ने भी लिख दिया। सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया।

सन् १९४० में ख़ाकसारो ने पंजाब मे ज़ोर पकड़ा। पंजाब-सरकार के प्रधान मन्त्री सर सिकन्दर हयात खाँ की सरकार ने इन पर पाबन्दी लगादी। ख़ाकसारो ने, सयुक्त-प्रान्त की भाँति, पंजाब में भी, पाबन्दियों के ख़िलाफ़ मोर्चा लगाना—प्रदर्शन करना और जुलूस निकालना—शुरू कर दिया। यू॰ पी॰ की भाँति पंजाब में भी इन्होंने पुलीस का सामना किया। लेकिन संयुक्त-प्रान्त की कांग्रेसी सरकार बहुत नम्रता और नर्मी से इनकी गैरक़ानूनी काररवाइयों का दमन करती थी, पंजाब सरकार ने दृढ़तापूर्वक इन ख़ाकसारो की गैरकानूनी हरकतों का दमन किया। इन्हीं दिनों पंजाब-सरकार के वज़ीरे-आज़म सर सिकन्दर हयात खाँ ने अपने एक बयान में कहा कि यह ख़ाकसार दुश्मनों से मिले हुए हैं और भारत में यह लोग "पंचम पंक्ति" के (Fifth Columnist) हैं। पंजाब में शीघ्र ही इनका दमन कर दिया गया। पंजाब मे अन्त होने से ख़ाकसार-आन्दोलन की कमर टूट गई।

पीछे भारत-सरकार ने सन् १९४० में इस संस्था को गैरक़ानूनी क़रार देकर इसके नेता अल्लामा इनायतुल्ला ख़ाँ मशरिक़ी को पकड़कर मदरास के सूबे मे नज़रबन्द कर दिया और भारत भर के ख़ाकसारो को भी पकड़ कर जेल भेज दिया गया। बहुतेरो ने मुआफी माँग ली और वह छोड़ दिये गये। ख़ाकसार फण्ड का धन भी जब्त कर लिया गया।

१६ अक्टूबर १९४१ को "इस्लाम के धामिक सिद्धान्तो की रक्षा, बंधुत्व, शुभ कमो, समाज-सेवा, प्रार्थना तथा शारीरिक-स्वास्थ्य के सिद्धान्तों की रक्षा के निमित्त" इनायतुल्ला साहब ने अनशन शुरू किया। मई-जून १९४१ में सरकार ने सैकड़ों ख़ाकसारो को रिहा कर दिया। फंड के कई लाख रुपये जो जब्त कर लिये गये थे, वे मुक्त कर दिये गये। फाक़े के बहुत दिन बाद सरकार ने सूचना दी कि यदि मि॰ मशरिक़ी यह घोषणा करदे कि उन्होंने ख़ाकसार आन्दोलन त्याग दिया है और समस्त ख़ाकसार संगठन का खात्मा कर दिया है, और वह अपने अनुयायियों को भी आज्ञा दे कि ऐसा ही किया