पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३८८

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ओरपैदा करता है । सन् १ ९३९ में ५ करोड़ ३ ० लाख टन ईसपात, ४९ करोड़ ९ ० लाख टन कोयला और १७ करोड़ २० लाख टन तेल वदोंहेदा हुआ, जो किसी भी देश की पैदावार से अनेक गुना आधिक है । यद्यपि एक बडी सीमा तक अमरीका स्वाहैंस्वी है तथापि यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का समर्थक है अक्ररीका की वैदेशिक नीति का मूल्य तत्त्व यह रहा है कि यह योंम्मीय मामलों ने हस्तक्षेप न करे और न योरप का कोई राष्ट्र उसकी वाति के पालन में वाघा उपस्थित करे । यह मनरो-सिद्धान्त का अनुयायी है । विगत विश्व-युद्ध में अमरीका के सम्मिलित होने के अनेक कारण बताये जफुते हैं, जैसे मित्र-राष्ट्र] को दिया हुआ ऋण, प्रजातत्र का अनुयायी होना और बो-रेती-मापा-भाषियों की एकतां । इनके अलावा अमरीका की यह आशट्ठा कि यदि मित्र-राष्ट्र हारगये तो जर्मनी से अमरीकी सुरक्षा को इत्रतरा पैदा होजायगा । कुछ भी हो, पिछले युद्ध के याद अमरीका को निराशा हुई, वसाँई की सरि-ध पर उसने हस्ताक्षर नहींकिये और न राष्ट्र. मे ही वह समि:- लित्त हुआ, (यद्यपि सघ के जनक अमरीकी राष्ट्रपति विल्सन ये) और संसार की राजनीति से तटस्थ रहने की भावना अमरीका में एक बार फिर प्रबल होउठी योरप भे अशान्ति बढते देख है ९३५ में वहाँ तटस्थता कानून बनाया. गया, ताकि पिछले युद्ध की स्थिति को फिर न दुहराया जासके । पिछले युद्ध में अमरीका ने मित्र-रारुट्ठों को सामान उधार दिया था और उसे अपने जरिये पहुंचाया था, जिसमे उसके जहाज डुबा दिये गये थे । १ ९३७ में तटस्थता कानून की पुनरावृत्ति जाई, जिसके द्वारा विदेशों को हथियारों का बेचना और पहुंचाना बिलकुल रोक दिया गया और दूसरे जगी सामानों को नकद मूल्य पर, और लेजाने की जिम्मेदारी ख़रीदार राष्ट्र के जिम्मे रखकर बेचना तय किया गया । सितम्बर है ९३९ मे वर्तमान युद्ध जिने पर कांग्रेस का विशेष अधिवेशन किया गया और, हप्रतों के वाद-विवाद के बाद, हथियारों को बेचने का बन्धन रद कर दिया गया और नक्रद मूल्य पर हथियार अपने आप लेजाने का कानून स्वीकार किया गया । लडाई के दौरानमेजब दिखाई पड़ाकि ब्रिटेन और मित्र-राष्ट्रते को अमरीकी ऋण और जहाजों म् आवश्यकताजू है, तब, १२ मार्च १९४१ को, "उधार और पट्टा कानून',