संयुक्त-राज्य श्रमरीका
बनाया गया जिसके द्वारा नक़द दाम देने की धारा उठा दीगाई । इसके बाद राष्ट्र्पति रूज़वैल्ट और अनेकानेक अमरीकी जन अनुभव करने लगे कि उनका महाद्वीप ससारव्यापी युध्द और उससे उत्पन्न विकट परिस्थितियो से पृथकू नहीं रह सकता । नात्सीवाद की सम्मावित विजय के बाद का खतरा उन्हें दिखाई पडने लगा । अतएव उन्होंने अपने देशवासियो को मित्रराष्ट्रो की सहायता की जाने की आवशयाक्ता को सुभाया । किन्तु फ्रास के पतन के बाद तक अमरीका चुप रहा । मित्र-राष्ट्रो को सहायता देने के प्रशन पर विचार करने के लिये एक कमिटी बिठाई गई, जिसने जनता को वस्तुस्थिति का दिग्दर्शन कराया । अमरीका मे स्वयं नात्सी और पादरी कफलिनू की फासिस्त काररवाइयों ने और भी स्पष्ट कर दिया कि ऍगलैनड की सम्मावित हार के बाद अमरीका पर भी आपत्ति आये बिना न रहेगी । तटस्थतावादी अमरीकी कह रहे थे कि उनका देश किसी भी आक्रमण का मुकाबला करने मे समर्थ है, किन्तु नात्सी-युध्द-कला की भीषणता और जर्मनी-इटली-जापान का त्रिगुट बन जाने से उनकी धारणा निर्मुल हो गई । अस्तु, अमरीका ने युध्द की तय्यारियाँ कीं - जगी समान बनने लगे, अनिवार्य सैनिक भतीं जारी कीगई, व्रिटेन से उसने नाविक और हवाई अड्ड प्रात् किये- कनाडा और लातीनी अमरीकी प्रजातन्त्रो को मिलाकर अपने गोलार्ध्द की रक्षा का उसने सूत्रपात किया । देश की नात्सी और फासिस्त कार्यवाहियो को रोक दिया गया । ब्रिटेन के अमरीका-स्थित-साम्रा ज्यान्तर्गत कुछ अड्ड 'अमरीका को,६६ साल के पट्ट' पर, मुफ़्त दिये गये और कुछ के बदले में ५० विध्वंसक, अन्य जगी लवाजमे सहित, ब्रिटेन की दिये गये ।
अप्रैल १६४१ में अमरीकी जहाज़ ब्रिटेन की सहयता के लिये अतला-न्तिक मे पहुँच गये और ७ जुलाई २६४१ को अमरीकी फौजो ने आइसलेन्ड पर अधिकार कर लिया, जहॉ बरतानी सेना पहले से पढी थी । लाल सागर का रास्ता अमरीकी जहाजो के लिये खोल दिया गया । ब्रिटेन की सहयता के लिये अमरीका को आगे बढ देख जर्मनी ने छेडछाड शुरू करदी । २८ दिसम्बर '४० और १२ सितम्बर '४१ को दो अमरीकी जहाज़ जर्मनो ने डुबा दिये, तब अमरीकी नौसेना को जर्मन-जहाजो को देखते ही उन पर गोला बारी करने क आर्डर जारी किया गया । ७ देसम्बर १६४१ को जापान ने