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अल्लाहबख़्श, ख़ानबहादुर
 

जाय, तो उनकी रिहाई के बारे में विचार किया जा सकता है। अल्लामा ने लिख दिया कि "मुझे ऐसा लगता है कि ख़ाकसार-संगठन का सैनिक पहलू युद्धकाल में सरकार के लिए संकट का कारण है। मैं ख़ाकसारो को यह आज्ञा देता हूँ कि वे युद्ध-काल मे पोशाक, बैज, बेलचा या शस्त्र, प्रदर्शन और परेड, आदि बन्द कर दें।" इसके साथ ही इनायतुल्ला साहब ने अपना अनशन तोड़ दिया। सरकार ने भी जेलों में पड़े ख़ाकसारो को छोड़ दिया। अल्लामा अभी नज़रबन्द हैं।


अल्लाहबख़्श, खानबहादुर––सिन्ध की सरकार के प्रधान मन्त्री हैं। सन् १९०० में पैदा हुए। इनकी शिक्षा मैट्रिक तक है। शुरू में यह सरकारी ठेकेदार थे। सबसे पूर्व, सन् १९२२ में, अल्लाहबख्श साहब बम्बई धारा-सभा के सदस्य चुने गये। बम्बई कौंसिल में इन्होने कृषि तथा राजस्व की समस्याओ में विशेषज्ञता प्राप्त कर ली। आप राजनीति में सदैव मुस्लिम लीग और मि॰ जिन्ना की नीति के विरोधी रहे हैं। सन् १९४० के अप्रैल मास मे देहली मे अखिल-भारतवर्षीय आज़ाद मुस्लिम सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन ख़ानबहादुर अल्लाहबख़्श की अध्यक्षता में हुआ। इसमें मुसलमानों की ७ प्रमुख धार्मिक तथा राजनीतिक सस्थाओं ने भाग लिया।समस्त भारत से हज़ारो की संख्या में प्रतिनिधि पधारे तथा ५० हज़ार से भी अधिक दर्शक पंडाल में उपस्थित थे। भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्ति का प्रस्ताव स्वीकार किया गया तथा मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की योजना का ज़ोरदार विरोध किया गया। अल्लाहबख़्श राष्ट्रीय विचारों के समर्थक तथा कांग्रेस-नीति के पक्ष में हैं। सिन्ध के आप दुबारा