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स्वराज्य
 

बनाई गई हो, जिसकी तैयारी में मशीन का प्रायोग न किया गया था। गरीब और ग्रामीणा जनता के लिये हितकारी होने के कारण खादी और ग्रामोद्योग के अहिंसात्मक प्रयोग द्वारा ही भारतीय सामाजिक विकाम हो सकता है।

स्वदेशी आन्दोलन— सन् १६०५ के वगभग के समय बगाल में स्वदेशी और बहिष्कार आन्दोलान का जन्म हुआ। उस समय विदेशी वस्तुओं-विशेषकर विदेशी कपडे - के बहिष्कार और स्वदेशी के प्रचार पर ज़ांर दिया गया। फलतः देश की कुछ औद्योगिक उन्न्ति भी हुई। कपटे के कई पुनलीघर बगाल आदि में खुले। छोटी-मोटी स्वदेशी वस्तुओं के बनाने का भी प्रथाम हुआ, किन्तु एक तो सामान की कमी, दूसरे भडकीले विदेशी माल का मुक़ाबला, तीसरे जनता की बढती हुई फैशन-प्रियता, अतः उसमे नफलता न मिली। जो वस्तुऍ स्वदेशी के नाम पर चली भी, उनमें बहुत-सा सामान आदि विदेशी लगता रहा। वास्तव में एसा प्र्यत्न कभी नहीं हुआ जिसमे किसी भी वस्तु के बनाने में विदेशो के आश्रित कदापि न रहना पडे। सन १९३० के सविनय-अवज्ञा आन्दोलन के समय भी 'बहिष्कार' का आन्शिक प्रयोग हुआ।

स्वर्णा-मानदण्ड— इस मुद्रा-प्रणाली के अनुसार बैक के नोटो के बदले सोना किसी भी समय निर्धारित दर से मिल सकता है। इसके तीन तरीके है: (१)पूर्ण स्वणा मानदण्ड - इसके अनुसार केन्द्रिय वैंक नोटों के बदले में सोने के सिक्के देती है और निर्धरित मूल्य पर वेचती तथा खरीदती है। (२) स्वर्णा बुलियन मानदण्ड - कोई सोने का सिक्का जारी नही किया जाता। नोटों के बदले सोना नहीं दिया जा सकता है। (३) स्वर्णा विनिमय मानदण्ड - केन्द्रय बैंक न सोना बेचती और न खरीदती है। वह विदेशी बैंकों से सोने में भुगतान लेती है। अमरीका, फ्रान्स, हालेण्ड, वेलजियम और स्विट्ज़रलेण्ड में, लढाई शूरू होने तक, सोने का सिक्का जारी था। अन्य देश बहुत पहले उसके चलन को छोड चुके हैं।

स्वराज्य—- अपने देश में अपने लिये अपना शासनाधिकार। भारतवर्ष में स्वराज्य शब्द का काग्रेस से विशेष सबध है। सन १९०६ में काग्रेस के कत्ता अपधिवेशन में प्रथमबार स्व्र्गीय दादभाई नौरोजी ने इस शब्द का