पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३९३

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स्वस्तिक ३८९ प्रयोग किया । तब से यह शब्द भारतीय राजनीति ने प्रचलित है । कांग्रेस ने अपने विधान के उई९मयों में इसे स्थान दिया । दिसम्बर १६१६ में समादचद्वारा हुई. शाही घोषणा में भी स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया गया था । सत् १६२६ के दिसम्बर तक भारतीय 'स्वराज' शब्दसूबक राजनीतिक उदय से सन्तुष्ट थे । स्वराज्य, का अर्थ था गिरिश सामाज्य के अन्तर्गत स्वशासन । किन्तु १६२६ की लाऔर काग्रेस में काग्रेस ने विटिश सामाज्य के अन्तर्गत स्वराज्य पाति के ध्येय का त्यागकर पूर्ण स्वाधीनता को ओना लद घोषित किया । तब से चूर्ण स्वराज्य' शब्द का प्रयोग [केया जाता है । स्वराज्य-दल-सद १६२३-२४ में स्वर्गीय देशबन्धुचित्तरजन दास तथा प" मोतीलाल नेहरू: ने काग्रेस के अन्तर्गत स्वराज्य-दल बनाने का प्रयक्ष किया । इस दल का उद्देश्य धारासमाको में जाकर आन्तरिक असहयोग करना था. खादी- प्रचार, मादक-द्रव्य-निषेध तथा सेना के व्यय में कमी आदि भी इसके काय-म में शामिल थे । यह दल केन्दीय और प्रान्तीय धारासभा-छो में शकिशाली दल रहा । सन् ( ९२९ तक इसने कार्य किया । सन् है दो ले उ में स्वर्गीय डाक्टर अंसारी, स्व० श्री सत्यन्होंते मआदे ने इस दल को, इसी उद्देश्य से, पुन-हित किया । स्वीन्तिक --९मरीरिस प्रचार का चि-त-ह । यह आयत, हिन्दुओं का, पुरातन पवित्र धार्मिक चि-र है । विवाहादि ममालिक अवसरों पर सौभात्वसूवक स्वस्तिकचिन्ह सजावट के साथ बनाये जाते हैं । नात्सी जर्मनी ने भी स्वस्तिक को अपना राशुशेय विव-न्ह बनाया है । वह इसे प्राचीन नाभिक अथवा ऋते निक चिंह बताते हैं, किन्तु इसकी पुष्टि में उनके पास कोई आधार नहीं है । हिन्दू इसे 'श्री' और हु:'"-, का रूप मानते हैं, और योरपियन विचारकों के अनुसार स्वस्तिक सु.: का प्रतीक है, जिसके चिर पुरातन सभ्यताओं के- अवशेष. में पाये जाते हैं । मगोलिया, उत्तरी और दक्षिणी अमरीका तथा पूर्व, देशो, यह, तक कि फिलस्तीन में भी इसके चिर पाये गये हैं । आधुनिक काल में स्वास्तिक पहले-पहल उन जर्मन सिपाहियों के जगी गोपन पर लगा दिखाई दिया जो, १६१६ मे, फिनलेन्ड और बाहिटक रात्यों में बोलशेविको से लड कर वापस लौटे थे । फिनलेण्ड की हवाई सेना का चिंह भी स्वस्तिक था । गोया से लौटे हुए जर्मन-सेनिक तत्कालीन जर्मन