पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३९५

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साम्यवाद ३६१ सामूहिक राज्य की पार्लमेट का चुनाव प्रादेशिक चुनाव-देवो द्वारा न होकर व्यपरिक उगे द्वारा होता है । एक सध के, नियत समता में सदस्य चुनकर भेजने का अनधिकार रहता है । ससार में केवल इटली की जाम व्यवस्था में इस प्रणाली को स्थान दिया गया है । सामूहिक सुरपति-हस शब्द की रचना १९२४ ये और उसके बाद उस समय हुई जब निरस्तीकरण के प्रचीन पर राष्ट्र-. की ओर से अनेक रिपोर्ट १नेकली और उन पर विवाद हुए । इसका अर्थ यह है विना समस्त देशों को समिभित हँ१कर अलग अलग प्रत्येक देश की सुरक्षा के लिये वचन-बम होना चाहिये । १९३५ में राहु-सध ने सामुहिक-सुरक्ष. की समाया पर विचार करने के लिये एक (विशेष समिति नियुक्र की और अबीसीनिया के अपहरण पर इटली के ।वेरुद्ध जो दयडाशाये लगाम, उनसे इस शब्द का अधिक प्रचार हुआ । इन दण्ड-ओ के विफल होने पर राष्ट्र-सध ने नात्सी जमने के विरुद्ध भी, आपूहिक सुरक्ष. के लिये, कार्यवाही करनी चाबी, परन्तु प्रयास असफल रहा । साम्प्रदायिक निर्णय-----' १९३२ म [त्संटेश प्रधान-मती सर रेम, भेक-डाना-ड- ने भारत की प्रान्तीय तथा केन्दीय धारा-ओं में प्रत्येक सभ्य- दाय के प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में अपना निर्णय दिया । यहीं साम्प्रदायिक निर्णय के नाम से प्रसिद्व है । मुसलमानो ने इस निर्णय को स्वीकार किया और उसका स्वागत किया । हिन्दू महा' ने इसका विरोध किया तथा कांग्रेस इस समन्ध में तटस्थ रही । साम्प्रदायिक निर्वाचन-प्रणाली-भारत में १९०९ के कोम-नो-माले- सुधारों के साथ साम्प्रदायिक निर्वाचन-प्रणाली का सूत्रपात हुआ । प्रान्तीय, के---, धारासभाको तथा स्थानीय बोटों में (बहे-दू, मुसलमान, (सेख, ईसाई आदि को अलग-अलग सम्प्रदाय मानकर उनके स्थान नियत किये गये । इसी सुधार द्वारा (सेख, यया हिन्दुओं से पृथक-केया गया । १९३ १ में अछूत बजे जानेवाले समुदाय को पृथक-निर्वाचन देकर लि-संजू-राष्ट्र से उभूकरने का प्रवाल गान्धीली के आत द्वारा विफल होगया । भारत में आज-प-श्व-हन्त यहीं प्रणाली 'जभी है । साम्यवाद (कम्-पुरि-तम)---., कारि-तिवारी (विचारधारा तथा अभि- लम (जिसका उदय हूँरिवादी व्यवस्था का नाश कर सर्धहारावर्ग का पचायती