३६२ माम्रज्यवाद शासन स्थापित करना है । अन्तरश्तिय समाजवादी आ-दोलन में औक से दो पद रहे हैं, नरम तथा उग्र अथवा मात्रे, और रेटिना-कल । साम्यवाद समाज वाद की उग्र धारा है । रूस की सोशलिस्ट पार्टी आम, १९० है मे, गोलशेत्वेक ( उग्र ) और निशेधिक ( नरम ) दो दल हुए थे । नवम्बर १९१७ मे, लेनिन के नेतृत्व मे, रूसी सता बोलशेविको उठ हाथ आगई और इस-त्-ह लोम होर:-: यह- युद्ध: में इस दल ने मैंनशेविको सहित सब नरम दल, पर विजय पा-:, । गोल- शेविको या कम्युनिस्ट, ने उद्योग-धा-यों लेन रा९नीपारण (केया, जमीन किसानो को वेटि दी और जर्मनी और अजित-या से हिते हुए युद्र को बन्द कर उनसे सन्धि कर ली । ( नरम समाजवादियों ने लडाई मे, अपने देशों को सरकारों की, मदद की ) । नरम समाजवादियों से अलग पहचाने जाने के, लिये लेनिन ने बोलशेविक हलका नाम कम्युनिस्ट रखा था । माय और जैजत्स ने १८४८ 7.;6. अपने गोषणापत्र में 'कम्युनिस्ट' शब्द का ही प्रयोग किया है । इसी प्रकार अन्य देशो में भी मजदूर सध, में दो दल हुए दृष्टि १९२० मे, माले से यन्तनिस्ट या तृतीय अन्तर्शत्ष्ट्रहीय सध की स्थापना हुई । साम्यवादी दर्शन औ४तेकतावायी (शिषेते हुए भी आत्मवादी है । यह एक ऐसे सुखी मानव-समाज नकी स्थापना करना चाहता है, जिसमें सबके पाससमान रूप से संपत्ति हो और सबके अधिकार समान हो, वयो-वि, असमानता ही वर्तमान सामाजिकसघर्ष का मूल है । इसके लिए यह बल-प्रयोग का भी समर्थक है । साभ्यवादप्रजातंत्रवब्दों समाजवाद के विम है । वह इसे धोखे की टट्टी मानता है और प्रजातंत्र को हैरिपतियों का गुन अधिनायक-तंत्र । वह वैधानिक लय से समाजवादी व्यवस्था स्थापित करनेके पक्ष में नहीं है । उसकी दृष्टि- में रायल कशी-नी ही समाजोद्धार का मूल साधन है । रूसी काकी तथा सोवियत सध विश्व-काकी के नमूने हैं । साम्राज्यवाद (मयति-जम)----.. तक विटेन में साधाज्यवब्दों विचारधारा की प्रबलता रही । बरतानबी कामनवैत्य होश विविध देशो को एक पुत्रये साय करने और साम्राज्य को बढाने की विचारधारा यहीं काम करती रहीं । अतएव सकुचित अर्ष में यह शब्द केवल बिटिश सामन्य के लिये व्यायवहृत हाता रहा । किस विकसित अर्थ में इसका भाव है देशो को करके सामाज्य की (थामना करना । आधुनिक युग में सामाज्यनाद
पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३९६
दिखावट