स्तालिन ठनकर्ता ही नहीं, प्रत्युत् अनेक भाषाविद्, विद्वान् लेखक तथा कवि भी हैं । उनकी लिखी मेज़िनी की जीवनी ज़ब्त हुई । 'सन् १८५७ का भारतीय स्वातत्र्य- युद्ध' पुस्तक भी जब्त कर लीगई । उनका लिखा सिखो का इतिहास भी जब्त कर लिया गया । आपने मराठी मे नाटक तथा उपन्यास भी लिखे हैं । ___स्तालिन, जोसफ विसारियोनोविच--- सोवियत रूस का अधिनायक; २१दिसबर १८७६ को, कोहकाफ़ ( काकेशस ) के दीदी-लोलो नामक स्थान मे, जन्म हुआ; इसका पिता मोची था । एक गिर्जे के कालिज मे, पादरी बनने के विचार से, उसने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की, किंतु वह काकेशस के तेल के कुँओ पर सगठित समाजवादी क्रांतिकारी आन्दोलन मे शामिल होगया । १८६८ से वह समाजवादी दल का सदस्य था और १६०३ से बोलशेविक दल का सदस्य रहा है । असली नाम जुगशविली है, कितु उसने अपना नाम बदल कर स्तालिन (फौलादी श्रादमी) रखा। उसने ज़ारशाही के खिलाफ संघर्ष किया, कई बार जेल गया तथा साइ- बेरिया में निर्वासित किया गया । बोलशेविक दल की केन्द्रिय समिति का १६१२ से सदस्य है। मार्च १६१७ की क्रान्ति के बाद वह पीटसबर्ग गया और वहाँ लेनिन के अधीन साम्यवादी दल के राजनीतिक विभाग (पोलिटिकल ब्यूरो) का सदस्य होगया । अक्टूबर-क्रान्ति-निर्देशक समितियो का सदस्य रहा । सन् १६१६ मे वह दलकी केन्द्रिय समिति का प्रधान-मत्री बनाया गया। जनवरी १६२४ मे, लेनिन की मृत्यु के बाद, स्तालिन तथा ट्रात्स्की मे उत्तराधिकार के लिये काफी संघर्ष रहा । उसने ट्रात्स्की के विरुद्ध ज़िनोवीफ और कैमनीफ से मिलकर सगठन किया और, ट्रात्स्की को निकाल देने के बाद, जिनोवीफ् दल के प्रभाव को हटाने के लिये, उसने दक्षिणपन्थी रीकाफ और कैलीनिन से सहयोग किया। १६२७ मे दल का पूरा अधिकार उसके हाथ मे आगया । ट्रान्स्की समस्त विश्व मे समाजवादी क्रान्ति का समर्थक था और स्तालिन "केवल एक देश मे समाज- वाद का प्रचार" अर्थात् रूस का समाजवादी ढग पर विकास चाहता है । आदर्श-भेद से दोनो दलो मे ख़ासी चवचख रही । अन्त मे स्तालिन के 'राष्ट्रीय' कम्युनिस्ट दल की विजय हुई और उसने धन्धो के राष्ट्रीयकरण और खेती के सामूहिककरण के लिये प्रथम पचवर्षीय योजना जारी की । राष्ट्र-शुद्धि के लिये
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