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असहयोग
 


वज़ीरे-आज़म बने। (देखो परिशिष्ट-पृष्ठ न० ४५२)। आपको किसी कमीने बदमाश ने १४ मई '४३ को तॉगे पर जाते-जाते गोली मार दी जिससे फौरन् उनकी मृत्यु हो गई।


असहयोग--पिछले महायुद्ध (सन् १९१४-१८) के अन्त मे, वर्साई की सन्धि के अनुसार, तुर्क-साम्राज्य के अङ्ग-भङ्ग और फलतः ख़िलाफत की अक्षुण्णता के नष्ट होने की योजना, साथ ही पंजाब मे, १९१९ ई० में, तत्कालीन छोटे लाट सर माइकेल ओ'ड्वायर और अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में जनरल ओ'डायर द्वारा किये गये कत्ले-आम और पंजाब के फौजी शासकों द्वारा हुए अनेक अत्याचारो के विरोध में महात्मा गान्धी ने घोषणा की कि इन अत्याचारो की पुनरावृत्ति को रोकने का एकमात्र साधन स्वराज्य-प्राप्ति है। अतएव सरकार से मतालिबा किया गया कि वह तुर्की को छिन्न-भिन्न इस प्रकार न करे कि जिससे संसार के मुसलमानो के धार्मिक-नेता ख़लीफा के पद और ख़िलाफत-सत्था का अन्त हो। दूसरी मॉग यह की गई कि पंजाब में जुल्म करनेवाले छोटे लाट और दूसरे अफसरो को यथोचित दण्ड दिया जाय। तीसरी मॉग स्वराज्य दिये जाने की थी।

तीनो में से एक का भी, राष्ट्रीय वाछा के अनुसार, निराकरण न होने से महात्मा गांधी ने असहयोग (Non-co-operation Movement) आन्दोलन छेड़े जाने की घोषणा की और, २० अगस्त १९२० को, पजाब-केसरी लाला लाजपतराय के सभापतित्व में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन, कलकत्ते, में प्रस्ताव पास हुआ, जिसमें राष्ट्र से अपील करते हुए असहयोग की योजना इस प्रकार निश्चित की गई–-सरकारी अदालतो, सरकारी शिक्षालयो, सरकारी नौकरियो, सरकारी खिताबो, सनदो और संस्थाओं तथा धारासभाओ का बहिष्कार। राष्ट्रीय पचायतों और राष्ट्रीय शिक्षालयो की स्थापना। विदेशी वस्त्रो का पूर्ण बहिष्कार। खादी का प्रचार, अछूतपन का नाश, नशाबन्दी और हिन्दू-मुसलिम ऐक्य की दृढ़ता।