१६१३ मे 'रश्त्रवादी ' विरोधी -दल की स्थापना की । बोथा और स्मतस की नीति दक्षिण आफ्रिका को ब्रोतिश साम्रज्या के अन्तर्गत रखने की थी । आरम्भ मे दक्षिण आफ्रिकी पर्लिमेन्त मे हर्त्जोग के ५ समर्थक थे, किन्तु १६२४ मे इनकी सन्ख्या ६३ होगैइ । तब हर्त्जोग ने मजदूर -दल से क्षणिक सम्भूक्ता करके स्मत्स की सर्कार को उखाद दिया और स्वयम प्रधान्मन्त्री बना । सन १६३४ मे हर्त्जोग की 'नैश्नाल्स्त' और स्मत्स की ' मदरते साओउथ आफ्रिकन ' पार्तियान एक होगयी और ' युनाइतेद साउथ आफ्रिकन नेशनल पार्ती' की स्थापना हुई । हर्त्जोग १५ वर्श तक पदस्थ रहा । वर्तामान युध मे हर्त्जोग मने दक्षिण आफ्रिकी सघ की तत्स्था पर जोर दिया ,किन्तु सघीय पर्लिमेन्त मे ५ सितम्बर १६३६ को , उसका यह प्रस्ताव अस्वीक्रुत हुआ । इस पर हर्त्जोग कीसर्कार ने त्याग पत्र दे दिया और स्मात्स प्राधान मन्त्री बना ।२३ जनवरी १६४० को जनरल हर्त्जोग ने प्र्लिमेन्त मे एक अन्य प्रस्ताव रखा कि दक्षिण आफ्रिकी सघ इस युध मे भाग न ले । ५६ के मुकाब्ले ८२ मत से यह प्रस्ताव गिर गया । अपने सहयोगी दा मलान के साथ तब जनरल हर्त्जोग ने व्क्यत्व प्राकशित किया कि उनका मन्तव्य ब्रितिश सम्रज्य से प्रुथक अफ्रीकी प्रजातन्त्र की स्थापना करना है । हर्त्ज़्जोग मलान क सन्युक्त दल अफ्रीका मे ५० प्रतिशत अफ्रिकी -भाशा -भासियोन का प्रतिनिधित्व कर्ता है । २६ अगास्त १६४० को हर्त्जोग काएक शान्ति प्रस्ताव कि " लदाई मे सम्प्रति हार होछ्की है " ६५ मत से अस्वीक्रुत हुआ । नैशन लिस्त पर्ती - कागेर्स के तय करने पर कि प्रस्तावित बोअर प्रजातन्त्र मे अङ्रेज़ी भशा - भशाए को समान अधिकार नही दिये जायेगे , हर्त्जोग क मलान से मत-भेद होगया । उसने दल और पर्ल्लिमेन्त से त्याग्पत्र ,७ मार्छ १६४२ को अन्य रश्त्रिय नेता होवेर्गा के साथ , स्मतस - मलान - विरोधी ' नवीन अफ्रिकी दल ' उस्ने बनाया । हरिजन- सन १६३२ से महात्मा गान्धी ने इस शब्द का प्रयोग दलित वर्ग के लिये किय है । तब से यह काफी प्रछलित होगया है । भारत मे ६ करूध ऍसे हिन्दू है जिन्हे नागरिकता के समान अधिकार प्राप्त नही है । हिन्दुओन के इस पिछले तथा दलित समुदाय के लिये ' हरिजन ' और कही-कही
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