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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/४२५

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५२. हरिजन-सेवक संघ 'भगत' शब्द प्रयोग किया जाता है। सरकार ने, अपने उद्देशानुसार, इस वर्ग के लिए 'परिगणित जातियाँ' (Scheduled Castes) नाम दिया है । सन् १६३३ से महात्मा गाधी 'हरिजन' नाम का एक साप्ताहिक अँगरेज़ी पत्र भी प्रकाशित करते हैं, जिसमें उनके विचार रहते हैं । हरिजन-सेवक-संघ-२५ सितम्बर १६३२ को, महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय के सभापतित्व मे, बम्बई में हिन्दुओं के नेताओं तथा प्रतिनिधियों की सभा मे एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकार किया गया था। 'साम्प्रदायिक-निर्णय' ( कम्युनल ऐवाई) में निर्धारित दलित-वर्ग को हिन्दूराष्ट्र से पृथक् करने की प्रस्तावित योजना के विरोध में महात्मा गान्धी यरवदा जेल में इस समय ग्रामरण व्रत कर रहे थे। इस प्रस्ताव मे यह घोषणा कीगई कि भविष्य में हिंदुओ में किसी भी व्यक्ति को, केवल जन्म के कारण, अस्पृश्य न माना जायगा और जिन्हे अबतक ऐसा माना जाता रहा है, उन्हें समान नागरिक अधिकार प्राप्त होगे । सन् १६३२ की ३० सितम्बर को सार्वजनिक विराट हिन्दू सभा मे यह प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि अस्पृश्यता के विरुद्ध प्रचार के निमित्त अ०भा० अस्पृश्यता-विरोधी संघ स्थापित किया जाय, जिसका मुख्य कार्यालय देहली मे रहे। इसी सभा मे यह निश्चय किया गया कि (१) समस्त सार्वजनिक कुएँ, धर्मशालाएँ, सड़के, स्कूल, श्मशान, दलित जातियो के लिए खोल दिये जायें। (२) समस्त सार्वजनिक मन्दिरो मे देव-दर्शन करने से दलित जातियो को न रोका जाय । इन दोनो उद्देशों के पूरा करने मे बल-प्रयोग या दवाव से नहीं प्रत्युत् शान्ति और समझौते से काम लिया जाय । श्री सेठ घनश्यामदास बिड़ला इस सघ के अध्यक्ष तथा श्री अमृतलाल वी० ठक्कर इसके प्रधान मन्त्री नियुक्त किये गये। २६ अक्टूबर १९३२ को इस सस्था का नाम बदलकर 'हरिजन-सेवक-संघ' कर दिया गया । २ जनवरी १६३५ को इस सघ का नया विधान बनाया गया। ___ सघ का प्रबध एक केन्द्रिय बोर्ड के हाथ मे है, जिसमे अध्यक्ष, प्रधान-मत्री तथा कोषाध्यक्ष के अतिरिक्त समस्त प्रान्तीय बोर्डों के अध्यक्ष सदस्य हैं। १५ सदस्य तक प्रधान को नियुक्त करने का अधिकार है। प्रत्येक प्रान्त मे