४३० हिटलर लोग इसी भ्रम मे रहे कि हिटलर उनके हाथ में खेलेगा। इस प्रकार देश में अपने शासन को सुदृढ़ बनाकर हिटलर को विदेशो की चिन्ता लगी। उसने दिखावा शुरू किया कि उसने बोलशेविज्म की बाद से दुनिया को बचा लिया है। दूसरी अोर वह यह भी कहता रहा कि उसका इरादा ससार मे शान्ति स्थापित करने का है, और वह सन्धियो का पालन करेगा। रक्त-स्नान'--नात्सी दल मे एक अनिश्चित समाजवादी-पक्ष भी था जो चाहता था कि नात्सी दल के कार्यक्रम का जो समाजवादी अन्श है, उसे पूरा किया जाय । दूसरी ओर ईसपात के कारखानेदार (जिनके धन्धो का सरकारी रुपये से पुनर्सङ्गठन होचुका था) तथा फौजी जनरल चाहते थे कि दल के कार्य- कम मे से समाजवादी अन्श को निकाल दिया जाय और समस्त शक्ति शस्त्री- करण तथा साम्राज्यवाद पर लगाई जाय । ३० जून १६३४ को इसेन मे डा० कप के मकान पर एक सभा हुई और उसके बाद ही क्रान्तिवादी अगुअायो और उनके अनुगामियो को यकायक गिरफ्तार करके सबका वध कर दिया गया । इनमे कतान रोहम भी, जिसके प्रयदो के कारण ही हिटलर का अभ्युदय हुआ था तथा जो नात्सी दल की सेना का प्रधान था, मारा गया । बहुत-से गैर- नात्सी भी वेकुसूर मारे गये, जिनमे जनरल फान श्लेशर और ७५ वर्ष के बूढे हर फान काहर आदि कैथलिक राजनीतिज्ञ और अधिकारी मुख्य हैं । अनुमानतः इसमें ३०० से १००० व्यक्तियो की हत्या कीगई । २५ जुलाई १६३४ को हिटलर ने ग्रास्ट्रिया मे विद्रोह कराया, जिस देश के मामलात मे हस्तक्षेप न करने की, कुछ दिन पूर्व ही, उसने घोषणा की थी। इस विद्रोह मे ग्रास्ट्रिया के चान्सलर डालफस सहित अनेक हत्याये कीगई। श्रास्ट्रिया की सरकार ने इस विद्रोह का दमन कर दिया। साथ ही मुसोलिनी ने अपने देश की उत्तरी -सीमा पर, प्रास्ट्रिया मे हिटलर के इस सशस्त्र हस्तक्षेप को रोकने के लिये, सैन्य-सचालन प्रारम्भ कर दिया । अतएव हिटलर को, इस विद्रोह मे, कोरे हाथो बैठ जाना पडा । २ अगस्त १६३४ को हिंडनबर्ग की मृत्यु होगई और हिटलर ने राष्ट्रपति तथा चान्सलर पदों को सयुक्त कर दिया। इस अवसर पर तथा अन्य अवसरो पर भी उसने, अपनी नीति के सम्बन्ध मे, जनमत लिये जाने की आज्ञा निकाली, किन्तु विरोध पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, साथ
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