है। समस्त संसार के देशो में विक्षुब्ध लोगो द्वारा ऐसी काररवाइयाँ की
जाती रही हैं। भारत में भी यह सब हुआ, किन्तु अब महात्मा गान्धी के
अहिंसावाद के प्रभाव से इसका उन्मूलन हो रहा है।
आर्थिक प्रवेश--एक देश द्वारा दूसरे देश में ऐसी आर्थिक स्थिति
उत्पन्न कर देना जिससे उस देश पर राजनीतिक नियंत्रण भी प्राप्त हो सके।
दूसरे देश के व्यापार-व्यवसाय में पूँजी लगाना, वहाँ मिले तथा कारख़ाने
चलाना, सड़कें, बैंक तथा रेलवे बनाना, अपने व्यापारियो के लिए उपनिवेश
बसाना, इत्यादि ऐसे साधन है जिनसे दूसरे देश पर आर्थिक-आधिपत्य के
साथ-साथ राजनीतिक प्रभुत्व भी क़ायम हो सकता है। भारत में भी वर्तमान शासक-सत्ता बहुत-कुछ इसी प्रकार स्थापित हुई। पाश्चात्य देशो ने
इस नीति का बहुत प्रयोग किया है, और यह नीति भी पिछले तथा वर्तमान
महायुद्धो का एक कारण हुई है।
आर्थिक राष्ट्रीयता--आर्थिक राष्ट्रीयता का, इस समय, प्रत्येक देश
में, जो उद्योग-धंधों में प्रगतिशील है, प्राधान्य है। प्रत्येक ऐसे देश की
अर्थनीति का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि अपने देश के उद्योग-धन्धो का
विकास इतने बड़े पैमाने पर किया जाय कि वह दूसरे देशो के बाज़ारो में तो
अपना तैयार माल बेच सके परन्तु उसे उनसे कोई वस्तु न ख़रीदनी पड़े।
आर्थिक साम्राज्यवाद--यह साम्राज्यवाद का नवीनतम स्वरूप है।
आर्थिक साम्राज्यवादी व्यवस्था दूसरे देशो और उपनिवेशो पर अपना कोई
राजनीतिक नियंत्रण रखना नही चाहती। वह तो सिर्फ उन देशो के आर्थिक
जीवन पर नियंत्रण रखना चाहती है। आज के पूँजीवादी तथा साम्राज्यवादी
राष्ट्र आर्थिक साम्राज्यवाद को अधिक उपयोगी इसलिए समझते है कि इसके
द्वारा उपनिवेशो का शोषण, बिना शासन-सूत्र हाथ में लिए, बड़ी सुविधा-पूर्वक, किया जा सकता है।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व--यह एक प्रकार की निर्वाचन-प्रणाली
है। निर्वाचन में उम्मीदवार की सफलता के लिए कम-से-कम आवश्यक मत
निर्धारित कर दिये जाते है। जितने उम्मीदवार किसी चुनाव के लिए खड़े
होते हैं, उनमें से मतदाता नाम छॉटकर अपनी इच्छानुसार लिखता है,