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अ०-भा० चर्खा संघ
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शुरू किया। इस संघ की विविध प्रान्तो मे १५ शाखाएँ हैं। प्रत्येक प्रान्त मे सघ का अवैतनिक एजेट नियुक्त है। प्रान्त के खादी-सबंधी-कार्य का पूरा दायित्त्व एजेट पर होता है।

चर्खा संघ का उद्देश्य हाथ के कते-बुने वस्त्र और वस्त्र-व्यवसाय को प्रोत्साहन देना है । खादी के क्षेत्र मे अनुसंधान तथा प्रयोगों द्वारा खादी-निर्माण मे उन्नति करना भी सघ का उद्देश्य है । सन् १६३७ मे ११,७७,५५८) की खादी तैयार कीगई, और सन् १९३८ मे २४,३७,६३३) की । कांग्रेस-मत्रिमण्डलो के शासन-काल मे खादी-उद्योग को यथेष्ट प्रोत्साहन मिला । खादीनिर्माण के लिए सरकारी सहायता भी दीगई । सन् १९३८ में २३,२०,१४०) की खादी बिकी । खादी एक महत्वपूर्ण ग्रामोद्योग है । भारत के भूखो मरते ग्रामीणो को खादी ही रोटी दे सकती है । खादी उद्योग मे १,७७,४६६ कतैये और १३,५६८ बुनकर-कोली, जुलाहे-लगे हुए रहे । भारत मे ६०६ खादीउत्पत्ति केन्द्र और ५७८ बिक्री के खादी-भडार चालू रहे । सन् १९४१-४२ मे खादी-उत्पादन मे बहुत प्रगति हुई । लगभग १ करोड की खादी इस वर्ष मे तैयार कीगई, जिसके द्वारा प्रायः १५ हज़ार गॉवो के कोई ३॥ लाख कारीगरो को ५० लाख रुपये से अधिक आजीविका मे मिले। लडाई के कारण मिल का कपडा मॅहगा होजाने से खादी की बहुत मॉग बढी, जिसे पूरा करने के लिये १६४२-४३ मे खादी की उत्पत्ति बढाने और वस्त्र-स्वावलम्बन की योजना को कार्यान्वित किया जानेवाला था। जिन स्थानो मे चर्खे चलने बन्द होगये थे या नही चलते थे, वहाँ भी चल पड़े थे । किन्तु अगस्त '४२ के घटनाक्रम से चर्खा संघ भी न बच सका । बिहार-सरकार ने पहले दिन, ६ अगस्त को, ही विज्ञप्ति निकालकर बिहार-शाखा पर ऐसे प्रतिबन्ध लगा दिये जिनसे चर्खा संघ का काम चालू रखना असम्भव होगया। दूसरे प्रान्तों मे भी या तो हुक्म से संघ की शाखाअो को बन्द किया गया या प्रतिबन्ध के कारण उन्हे बन्द कर देना पडा, जब कि प्रान्तीय सरकारो से चर्खा सघो को काफी सहायता मिलती रही है । दमन के कारण ४०० से अधिक खादी-उत्पादक केन्द्र और भण्डार इस समय बन्द होचुके हैं । माल की जब्ती, लूट और अाग आदि से ६ लाख रुपये की हानि हुई है और डेढ़ लाख कारीगर बेकार होगये हैं ।